Book Title: Natyadarpan Hindi
Author(s): Ramchandra Gunchandra, Dashrath Oza, Satyadev Chaudhary
Publisher: Hindi Madhyam Karyanvay Nideshalay Delhi
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का० ४६, सू० ६६ ] प्रथमो विवेकः
। १३५ तथा"विदूषक :---भोदि ! किं अइदुब्बला सि ।
भवति ! किमतिदुर्बलासि । इति संस्कृतम] । लम्बस्तनो---मग्गपरिस्समेण । [मार्गपरिश्रमेण । इति संस्कृतम्] । विदूषक : ---भो कलहंसा कित्तिएहिं गोणेहि मुदेहिं एसा इध संपत्ता ? [भो कलहंस ! कियद्भि-गोभि-म तैरेषात्र सम्प्राप्ता । इति संस्कृतम] ।
[कलहंसो विहस्याधोमुखस्तिष्ठति ॥” इति । (७) अथ नर्मद्यति :
सूत्र ६६]-दोषावृत्तौ तु तद्युतिः । दोषावृत्ये दोषाच्छादनाय यत् पुनर्हसनं हास्यहेतुर्वाक्यं सा तस्य नर्मणो द्योतनं नर्मद्युतिः । यथा रत्नावल्याम्
"विदूषकः--भोः ! अज्ज वि एसा चउव्वेई विय बंभणो रियाउ पडिउपयत्ता । [भो ! अद्याप्येषा चतुर्वेदीव ब्राह्मण ऋचः पठितु प्रवृत्ता । इति संस्कृतम्] । राजा-वयस्य किमप्यन्यचेतसा मया नावधारितम् । तत् किमनयोक्तम् ? विदूषक :-भो ! एद एदाए पढिदं
दुल्लहजणाणुराओ लज्जा गरूई परव्वसो आप्पा।
पियसहि ! विसमं पिम्म मरणं सरणं नु वरमेकम् ॥ [भोः ! इदमेतया पठितम्[दुर्लभजनानुरागो लज्जा गुर्वी परवश आत्मा। प्रियसखि ! विषमं प्रेम मरणं शरणं नु वरमेकम् ॥ इति संस्कृतम्]।
तथा"विदूषक-भगवति ! [कहिए] प्राप दुर्बल कैसे हो रही हैं ? लम्बस्तानी-मार्गकी थकावटसे। विदूषक-अरे कलहंस [रास्तेमें कितनी गौएं मार कर ये यहां तक पाई हैं।
[कलहंस हंसते हुए मुख नीचा कर लेता है।" यह सब हास्य-परक वचन हैं। इसलिए यह भी नर्मका उदाहरण है। (७) नर्मद्युति
अब 'नर्मधुति' [नामक प्रतिमुख-सन्धिके सक्षम अंगका लक्षण करते हैं]
मित्र ६९]-दोषके छिपानेके लिए [हास्य वचनोंका प्रयोग होने पर तश्रुति अर्थात्] नर्मद्युतिः नामक अंग माना जाता है। जैसे रत्नावली में--
1 षक-अरे यह [मारिका] तो अब भी चतुर्वेदी ब्राह्मणके समान प्रचामोंका पाठ करे जा रह है।
राजा-हे मित्र मेरा ध्यान दूसरी ओर था, मैं समझा नहीं कि इसने क्या कहा। विदूषक-परे इसने यह कहा है कि
दुर्लभ जनके साथ प्रेम हो गया है, भारी लब्जा हो रही है किन्तु प्रात्मा भी परवक्ष है। प्रिय सखि ! प्रेम बड़ा कठिन है अब तो केवल मरण हो एक शरण है।
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