Book Title: Natyadarpan Hindi
Author(s): Ramchandra Gunchandra, Dashrath Oza, Satyadev Chaudhary
Publisher: Hindi Madhyam Karyanvay Nideshalay Delhi
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नाट्यदर्पगाम् .
का०४८, सू०६७ श्रीरेषा पाणिरप्यस्याः पारिजातस्य पल्लवः ।।
कुतोऽन्यथा स्रवत्येष म्वेदच्छद्मामृतद्रवम् ॥ इति यावत्। अत्र राज-सागरिका-विदूषक-सुसङ्गतानामेकत्र योजनम् ।
अन्ये तु वर्णानां ब्राह्मणादीनां यथासम्भवं द्वयोस्त्रयाणां चतुर्णा वा एकत्र मीलनं वर्णसंहारमाचक्षते । यथा वीरचरिते तृतीयेऽङ्के
परिषदियमृषीणामेष वृद्धो युधाजित सह नृपतिभिरन्यैर्लोमपादश्च वृद्धः । अयमविरतयज्ञो ब्रह्मवादी पुराणः
प्रभुरपि जनकानामद्रहो याचकस्ते ।। इति । एके तु वर्णितार्थतिरस्कारं वर्णसंहारमामनन्ति । उदाहरन्ति च यथा वेणीसंहारे कचुकिना रथकेतनपतने निवेदिते भानुमती
"अंतरीयदु दाव एदं समस्थबंभणाणं वेयज्मुणि-मंगलुग्घोसेण । इति"
[अन्तरीयतां तावदेतत् समस्त ब्राह्मणानां वेदध्वनिमंगलोद्घोषेण । इति संस्कृतम्] ॥४॥
यह [साक्षात्] लक्ष्मी है और इसका हाथ पारिजातका पल्लव है। अन्यथा [इससे] रवेदके बहानेसे अमृतद्रव कैसे टपक रहा है।
इस [सारे प्रसंग] में राजा, सागरिका, विदूषक तथा सुसंगता [प्रादि अनेक पात्रों] का एक साथ सम्मिलन हो गया है [अतः यह वर्णसंहृति नामक अंगका उदाहरण है] ।
अन्य [व्याख्याकार] तो वर्णो अर्थात् ब्राह्मणादिका यथासम्भव दो-तीन या चार [वों] के एक साथ इकट्ठे होनेको 'वर्णसंहृति' कहते हैं । जैसे महावीरचरितके तृतीय अङ्कमें
सीता-स्वयम्वरमें रामचन्द्रजी के द्वारा धनुष तोड़ दिए जाने के बाद परशुरामजीके प्रा जानेपर उनके साथ संघर्षका प्रसङ्ग चल रहा है। परशुरामजी रामचन्द्रपर अत्यन्त अप्रसन्न हैं और उनको मार देने का भय दिखला रहे हैं। उस समय अन्य सब लोग इकट्ठे होकर परशरामजीको मनाने का यत्न कर रहे हैं । इसी प्रसङ्ग मेंसे यह श्लोक यहाँ उद्धृत किया गया है। उसमें ब्राह्मण, क्षत्रिय मादि अनेक वर्गों के प्रयोजनवश एकत्र हो जानेसे यह वर्णसंहारका उदाहरण है। श्लोकका अर्थ निम्न प्रकार है--
यह ऋषियोंका समुदाय, यह [भरतके मामा केकय देशके राजा] वृद्ध युधाजित्, और अन्य राजाओंके साथ ये बूढ़े लोमपाद तथा निरन्तर यज्ञ करने वाले एवं पुराने ब्रह्मवादी जनकोंके राजा [सीरध्वज] ये सब आपके प्रविरोधी होकर प्रापसे याचना कर रहे हैं [प्रतः अबकी बार पाप रामचन्द्रको क्षमा करदें] ।
अन्य लोग गित प्रर्थके तिरस्कारको 'वरगसंहार' मानते हैं। और उसके उदाहरण रूपमें वेणीसंहार [के द्वितीय अङ्क] में कञ्चुकीके द्वारा [दुर्योधन के] रथकी ध्वजा के पतन [रूप अशकुन] की सूचना मिलनेपर भानुमती प्राके निम्न वचनको उदाहरण रूयमें प्रस्तुत करते हैं
भानुमती- इस [अपशकुन] को समस्त ब्राह्मणोंके [द्वारा किए जाने वाले] वेद-ध्वनि के घोषद्वारा शमन कर दो ॥४८॥
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