Book Title: Natyadarpan Hindi
Author(s): Ramchandra Gunchandra, Dashrath Oza, Satyadev Chaudhary
Publisher: Hindi Madhyam Karyanvay Nideshalay Delhi
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का० ३१, सू० ३२ ] प्रथमो विवेकः
[ ७५ अथ चतुर्थमाह
[सूत्र ३२] अप्रकटे श्लिष्ट-स्पष्ट-प्रत्यभिधापि च ॥३१॥
अप्रकटे प्रत्युत्तरकारकेणाविज्ञातेऽर्थे केचिदुपक्षिप्ते सति श्लिष्टमन्याभिप्रायप्रयुक्तमपि प्रस्तुतसम्बद्धं, स्पष्ट विशेषनिश्चयकारि, यत् प्रत्यभिधानं प्रत्युत्तरं, तद्रूपा च वागिति ।
यथा मुद्राराक्षसेचाणक्य:-अपि नाम दुरात्मा राक्षसो गृह्य त ? एवमस्फुटेऽर्थे उपक्षिप्ते[प्रविश्य] सिद्धार्थकः-अय्य गहितो। [आर्य गृहीतः । इति संस्कृतम् । ] इति प्रत्युत्तरं प्रस्तुतार्थसम्बद्धं विशेषनिश्चयकारि च । अत एव पुनः-- अब चतुर्थ [पताकास्थान] को कहते हैं ।
[सूत्र ३२]---अप्रकट [अर्थात् उत्तर देनेवाले व्यक्तियोंको भी अज्ञात] अर्थके उपस्थित होने पर [अन्य अभिप्रायसे कहा जानेपर भी प्रकृत प्रकरणमें] सुसम्बद्ध तथा [उस प्रस्तुत अप्रकट प्रर्थके विषयमें विशेष रूपसे निश्चय करानेवाला] स्पष्ट उत्तर भी [चतुर्थ प्रकारका पताकास्थान कहलाता है । ३१ ।
अप्रकट अर्थात् प्रत्युत्तर देनेवालेको अविदित अर्थको किसी [वक्ताके द्वारा] प्रस्तुत किए जानेपर श्लिष्ट अर्थात् अन्य अभिप्रायसे कथित होनेपर भी प्रकृत अर्थसे सम्बद्ध और स्पष्ट प्रर्थात् [उस प्रस्तुत अप्रकट अर्थ के विषय में] विशेष निश्क्य करानेवाला जो उत्तर उस रूपकी वाणी [चतुर्थ प्रकारका पताकास्थान कहलाती है ।
जैसे मुद्राराक्षसमें-- "चाणक्य--क्या दुरात्मा राक्षस पकड़ में आ सकेगा ?"
इस प्रकारके अप्रकट [अर्थात् उत्तर देनेवाले सिद्धार्थकको जिस बातका ज्ञान नहीं है, अर्थात् सिद्धार्थकने इस बातको नहीं सुना है उस प्रकारके] अर्थके प्रस्तुत होनेपर
[अन्य कार्यवश चाणक्यके पास प्राया हुआ] सिद्धार्थक [प्रविष्ट होकर कहता है] प्रार्य [पाका संदेश] ग्रहण कर लिया।"
सिद्धार्थकके प्रवेशके पहिले चारणक्यने स्वगत रूपमें 'अपि नाम दुरात्मा राक्षसो गृह्य त' यह वाक्य कहा था। सिद्धार्थकने उस वाक्यको नहीं सुना था। उसे इस बातका कोई ज्ञान नहीं था। किन्तु चाणक्य के इस वाक्यके उच्चारण करने के साथ ही अन्य कार्यवश चाणक्य के पास पाया हुमा सिद्धार्थक प्रविष्ट होकर कहता है 'पार्य गृहीतः' । तब इस वाक्य का चाणक्य के वाक्य के साथ सम्बन्ध बन जाता है और उससे चाणक्यको यह प्रतीत होता है कि 'आर्य दुरात्मा राक्षस पकड़ लिया गया समझो।'
इस प्रकार सिद्धार्थक द्वारा कहा गया ] यह प्रत्युत्तर प्रस्तुत [ राक्षस. ग्रहण रूप] प्रर्थसे सम्बद्ध AST विशेष रूपसे [राक्षसके पकड़े जानेका] निश्चय करनेवाला [हो जाता है।
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