Book Title: Natyadarpan Hindi
Author(s): Ramchandra Gunchandra, Dashrath Oza, Satyadev Chaudhary
Publisher: Hindi Madhyam Karyanvay Nideshalay Delhi
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नाट्यदर्पणम् [ का० ३५, सू०४० (३) अब मास्याशा विपत्रायति[सूत्र ४०]-फलसम्भावना किञ्चित् प्राप्त्याशा हेतुमात्रतः ॥३॥
मात्रशब्देन फलान्तरयोगः प्रतिबन्धनिश्चयश्च व्यवहद्यते । पलान्तरासम्बन्धात् अनिश्चितबाधकाभावाच्चोपायादीषत् प्रधानफलस्य या सम्भावन!, न तु निश्चयः, सा प्राप्तेः प्रधानफललाभस्य आशा प्राप्त्याशा ।
यथा वेणीसंहारे तृतीयेऽथे। . "भीमा-कृष्टा येन शिरोरुहेषु पशुना पाश्चालराजात्मजा,
येनास्याः परिधानमप्यपहृतं राज्ञां गुरूणां पुरः । यस्योरः स्थलशोणितासवमहं पातु प्रतिज्ञातवान,
सोऽयं मभुजपञ्जरान्तर्गतः संरक्ष्यतां कौरवा ॥" इत्यत्र दुःशासनवधादशेषकौरवबधसम्भावनेन युधिष्ठिरस्य राज्यप्राप्तिसम्भवः।
यथा वा नलविलासे चतुर्थे स्वयम्बराङ्क"नलः-कलहंस ! मकरिके ! फलितः स एष वां प्रयास: ।
कलहंसः-देव नावयोः प्रयासः किन्तु देवस्य म्वप्नः ।। • त्वरा या परम प्रौत्सुक्यको प्रदर्शित कर रहे हैं। इसलिए ये प्रयत्नावस्था के उदाहरण के रूप में यहाँ प्रस्तुत किए गए हैं। (३) प्राप्त्याशावस्था--
अब प्राप्त्याशा [रूप तृतीयावस्था] को विवेचन करते हैं
[सूत्र ४०] -हेतुमात्रसे फलको [प्रातिको] कुछ सम्भावना [हो जाना] 'प्राप्त्याशा' [कहलाती है । ३५।
मात्र शब्दसे [मुख्य फलके अतिरिक्त या मुख्य फलसे भिन्न] अन्य फलका सम्बन्ध तथा प्रतिबन्धके निश्चयका निवारण किया है। [उस हेतुके साथ] अन्य फलका सम्बन्ध न होनेसे और किसी अनिश्चिम बाधकके अभावरूप उपायसे प्रधान फलको [प्राप्तिको] थोड़ी-सी सम्भावना, न कि निश्चय होना, प्राप्तिकी अर्थात् प्रधान फलकी प्राप्तिको प्राशा होनेसे 'प्राप्त्याशा' [कहलाती है।
जैसे वेणीसंहारके तीसरे अङ्कमें।
"भीम---जिस दुष्ट पशुना] ने पाञ्चालराजकी पुत्रीके केशोंको खींचा था और जिसने राजामों तथा गुरुयोंके सामने उसके वस्त्रोंका भी अपहरण [करनेका यत्न किया। जिसकी छातीका रक्त पीनेकी मैंने प्रतिज्ञा की थी वह [दुष्ट दुःशासन इस समय मेरी भुजाओंके शिकंजेमें प्रा गया है । हे कौरवो ! [तुम्हारी सामर्थ्य हो तो प्राकर अब] इसकी रक्षा कर लो।"
इसमें दुःशासनके वधसे समस्त कौरवोंके वधको सम्भावना हो जानेसे युधिष्ठिरको राज्यप्राप्तिको सम्भावना [प्राप्त्याशा] हो गई है।
अथवा जैसे नलविलासके स्वयम्बराडू नामक चतुर्थ अङ्कमें-- "नल-हे कलहंस ! हे मकरिके ! तुम दोनोंका यह प्रयास सफल हो गया। कलहंस-देव ! हम दोनोंका प्रयास नहीं किन्तु पापका स्वप्न [सफल हुमा ।
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