Book Title: Natyadarpan Hindi
Author(s): Ramchandra Gunchandra, Dashrath Oza, Satyadev Chaudhary
Publisher: Hindi Madhyam Karyanvay Nideshalay Delhi
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(८) अथ भेदनम् -
नाट्यदर्पणम
[ सूत्र ५७ ] - भेदनं पात्रनिर्गमः ॥ ४४ ॥
रङ्गप्रविष्टानां पात्राणां निर्गमो रङ्गान्निःसरणं येन तद् भेदनम् । पात्राणां यथास्वं प्रयोजनवशादितश्च इतश्च गन्तुमन्यार्थोऽप्यभिप्राय उद्यमो वा रङ्गान्निर्गममापादयन् भेदनमुच्यते । यथा 'वेणीसंहारे' भीमो द्रौपद्या संग्रामापायशङ्किन्या शरीरानपेक्षे पराक्रमे निषिद्धः प्रत्याह---
"भीमः - सुक्षत्रिये -
[ का० ४४, सू० ५७
अन्योऽन्यास्फालभिन्न-द्विपरुधिर- वसा-सान्द्रमस्तिष्क पङ्के,
मग्नानां स्यन्दनानामुपरिकृत पदन्यासविक्रान्तपत्तौ । स्फीतास+पानगोष्ठी र सदशिवशिवा तूर्य - नृत्यत्क बन्धे,
संग्रामैकार्णवान्तःपर्यास विचरितु पण्डिताः पाण्डुपुत्राः ||" इति ।। एतेन हि संग्रामविचरणे पाण्डवानां पाण्डित्यख्यापनेन संग्रामावतरणाभिप्रायः सहदेवस्य, आत्मनश्च संघात भेदनार्थ एवोपदर्शित इति भेदोऽङ्गम् ।
इसको न कराके करण के अनन्तर उसकी गणना कराई है। इसका कारण यह है कि करण तक के ६ ग्रङ्ग केवल मुखसन्धिमें ही होते हैं। आगे गिनाए गए शेष छः अङ्ग मुखसन्धिके अतिरिक्त अन्य सन्धियों में भी होते हैं । यह बात पीछे कह चुके हैं। यह विलोभन श्रङ्ग मुखसन्धि के प्रतिरिक्त अन्य सन्धियों में भी हो सकता है । इसलिए उसका नाम परिन्यासके बाद न रखकर अन्य सन्धियों में भी होनेवाले ग्रङ्गों के साथ रखा गया है। (८) भेदन --
ब भेदन [नामक मुखसन्धिके प्रष्टम अङ्गका लक्षरण करते हैं]--
[सूत्र ५७ ] पात्रोंका [रंङ्गभूमिसे] बाहर जाना 'भेदन' [कहलाता ] है १४४॥
रङ्गभूमि में प्रविष्ट हुए पात्रोंका निर्गम अर्थात् रङ्गभूमिसे बाहर जाना जिससे होता है वह 'भेदन' कहलाता है । किसी प्रयोजनवश पात्रोंका इधर-उधर जानेका अभिप्राय या उद्योग भी रङ्गभूमि निर्गमका हेतु होनेसे 'भेदन' कहलाता है। जैसे 'वेणीसंहार' में युद्ध में श्रनिष्टको आशङ्का करनेवाली द्रौपदीके द्वारा शरीरचिन्ताको छोड़कर पराक्रम करनेके लिए मना किए जानेपर भीमसेन कहते हैं
"भीम- हे सुक्षत्रिये !
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एक-दूसरे के साथ संघर्ष में कटे हुए और हाथियोंके रुधिर एवं वसा [ चर्बी] से भरे हुए सिरोंको कीचड़ में डूबे हुए रथोंके ऊपर होकर पदाति सैनिक जिसमें पराक्रम दिखला रहे हैं, गरम-गरम रुधिरके पानकी गोष्ठीमें श्रृंगाल तथा शृगालियोंकी श्रमङ्गल ध्वनिका वाद्य [तुर्य] जिसमें बज रहा है और [कबन्ध अर्थात् सिर कटे हुए ] रुण्ड जिसमें नाच रहे हैं। इस प्रकारके अनोखे संग्राम सागरके जलके भीतर घुसकर विचरण करनेमें पाण्डव लोग निपुण हैं । [ इसलिए इस विषय में तुम किसी प्रकारको चिन्ता मत करो] "
इसके द्वारा संग्रामके भीतर विचरण करनेमें पाण्डवोंके पाण्डित्यको सूचित करके सहदेव के संग्राम में श्रवतीर्ण होनेके अभिप्रायको और [शत्रुनोंके] संघातको भेदन करनेके अपने
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