Book Title: Natyadarpan Hindi
Author(s): Ramchandra Gunchandra, Dashrath Oza, Satyadev Chaudhary
Publisher: Hindi Madhyam Karyanvay Nideshalay Delhi
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१२]
यथा वेणीसंहारे षष्ठेऽङ्के
"भूमौ क्षिप्त्वा शरीरं निहितमिदमसृक् चन्दनाभं मयाङ्ग, लक्ष्मीरायें निषण्णा चतुरुदधिपयःसीमया सार्धमुर्व्या । भृत्या मित्राणि योधाः कुरुबल मनुजां दग्धमेतद् रणाग्नौ, नामैकं यद् ब्रवीषि क्षितिप ! तदधुना धार्तराष्ट्रस्य शेषम् ॥” इत्यनेन दुर्योधनं इत्वा भीमसेनेन युधिष्ठिर राज्यसमर्पणफलयोगो दर्शितः । यथा वा राघवाभ्युदये
नाट्यदर्पणम्
[ का० ३६, सू० ४२
"वैदेहीं हृतवांस्तदेष महतः संख्ये विषह्य क्लमान्, चक्रेोत्पाटितकन्धरो दशमुखः कीनाशदासीकृतः ।
फलागम रूप पञ्चमी अवस्था के लक्षणकी व्याख्या में 'साक्षात् ' तथा 'फलागम' इन दो शब्दोंकी व्याख्यापर ग्रन्थकारने विशेष बल दिया है । 'साक्षात् पदसे उन्होंने यह अर्थ लिया है कि इष्ट अर्थकी प्राप्ति दानादि कर्मोसे प्राप्त होनेवाले स्वर्गादि रूप फलके समान जन्मान्तरभाविनी न होकर 'साक्षात्' इसी जन्म में और कमों के अनन्तर ही होनी चाहिए । इसका कारण यह है कि यदि नाटकमें भी जन्मान्तरभाविनी फलप्राप्तिका वर्णन किया जाय तो फिर प्रेक्षकको कर्म और उसके फलका सम्बन्ध प्रत्यक्ष रूपसे गृहीत न हो सकनेसे उसे नाटक से कर्तव्याकर्तव्यकी शिक्षा प्राप्त नहीं हो सकेगी। इसलिए फलप्राप्ति साक्षात् रूपमें ही प्रति होनी चाहिए ।
दूसरा बल उन्होंने 'फलागम' पदकी व्याख्यापर दिया है । फलागम शब्दसे उन्होंने फलकी पूर्ण रूप से प्राप्ति नहीं अपितु केवल फलप्राप्तिका आरम्भ यह अर्थ लिया है। इसका कारण यह है कि फलकी पूर्ण रूपसे प्राप्ति तो अवस्थाके भीतर नहीं प्राती है । वह तो अन्तिम साध्य है । यहाँ अन्तिम साध्यका नहीं अपितु केवल अवस्थाओं का वर्णन चल रहा है । इसलिए फलागम शब्द से फलप्राप्तिका प्रारम्भ यह अर्थ ग्रन्थकारने लिया है । जो सर्वथा उचित है ।
आगे फलागम रूप पञ्चमी अवस्था के दो उदाहरण देते हैं ।
जैसे वेणीसंहारके छठे अजूमें [भीम कह रहे हैं ] -
[दुर्योधनके] शरीरको पृथिवीपर पटककर उसका यह रक्त मैंने चन्दनके समान अपने शरीरमें लगा लिया है। चारों समुद्रोंका जल जिसकी सीमा है इस प्रकार की पृथिवीकेसाथ लक्ष्मीको प्रार्य [यु षिष्ठिर] में स्थापित कर दिया है । [ कौरवोंके] भृत्य, मित्र, योधागरण, कुरुसेना और [ दुर्योधनके] भाई सब इस रखाग्निमें भस्म हो गए । हे राजन् [ युधिष्ठिर ] ! प्राप जिस नामको बोल रहे हैं. [ धृतराष्ट्रके पुत्र ] दुर्योधनका केवल एक वही [नाममात्र ही ] शेष रह गया है ।
इससे दुर्योधनको मारकर भीमसेनने युधिष्ठिरको राज्यापंग रूप फलको प्रदर्शित किया है । [ अतः यह फलागमका उदाहरण है ] ।
अथवा जैसे राघवाभ्युदयमें [ राम कह रहे हैं कि ] -
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[राजगने] वैदेहीका अपहररण किया था इसलिए संग्राममें महान् कष्टोंको सहकर भी चक्रसे गर्दन काटकर उस रावणको यमराजके अर्पित कर दिया । किन्तु उस [ सीता ] के
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