Book Title: Natyadarpan Hindi
Author(s): Ramchandra Gunchandra, Dashrath Oza, Satyadev Chaudhary
Publisher: Hindi Madhyam Karyanvay Nideshalay Delhi
View full book text
________________
का० ३६, सू० ४७ ] प्रथमो विवेकः
[ १०१ अत्र लक्ष्मणस्य शक्तिभेदव्यसनेन फलप्राप्तिविघ्नजन्मा विमर्शः।
शापाद्यथा अभिज्ञानशाकुन्तले पञ्चमेऽङ्के दुर्वासःशापविमोहितत्वेन त्यक्तायां शकुन्तलायामहितायां च, षष्टेऽङ्के अंगुलीयकदर्शनेन समुपजातस्मृती राजनि दुर्वासःशापविघ्नजो विमर्शः।
दैवतो यथा विधिविलसिते पंचमेऽङ्के"कंचुकी-हा धिक कष्टम् , नैव्रोल्लंघ्यः प्राक्तनः कर्मविपाकः ।
वार्तापि नैव यदिहास्ति स राजचन्द्रः, तेनोज्झिता विधिविमोहितचेतनेन । देवा वने त्रिदशनाथविलासिनीभिः,
कतु गता जगति सख्यमिति प्रवादः।। अत्र सूदाचा रावलम्बिनि नले देवत्यक्तदमयन्ती-राज्यप्राप्तिविघ्नजो विमर्शः।
क्रोधाद्यथा वेणीसंहारे पष्ठेऽङ्के सिद्धकल्पेऽपि कार्ये क्रोधातिशयादपर्युषितां पाया। इस लिए रणको धुराको धारण करनेवाली मेरी भुजाओंका जन्म ही व्यर्थ हो गया।
यहाँ लक्ष्मणके शक्ति लग जानेके कारण उपस्थित व्यसनसे फलप्राप्तिमें विघ्न प्रा पड़नेसे उत्पन्न [व्यसन-जन्य] विमर्श [संधि] है ।
इस प्रकार इन दोनों श्लोकों द्वारा ग्रंथकारने प्रत्यासन्न फलकी सिद्धि में किसी आकस्मिक विघ्नके आ जाने से व्यसन-जन्य संशय या विमर्श के उपस्थित हो जाने के उदाहरण दिए हैं।
शापसे उत्पन्न [विमर्श सन्धिका उदाहरण] जैसे अभिज्ञान शाकुन्तल [नाटक के पञ्चम अङ्कमें दुर्वासाके शापसे बेसुध होनेके कारण [ दुष्यन्तके द्वारा ] शकुन्तला का परित्याग कर देने और उसके अन्तहित हो जानेके बाद, षष्ठ अङ्गमें अंगूठीको देखकर राजाको उसका स्मरण पानेपर, दुर्वासाके शापरूप विघ्नसे उत्पन्न विघ्नजन्य विमर्श सन्धि है।
दैववश [ विमर्शका उदाहरण ] जैसे 'विधि-विलसित' [ नाटकके ]. पंचमाङ्कमकञ्चुकी-हा धिक, बड़े दुःखकी बात है कि पूर्व जन्मके कर्मोके फलसे बच नहीं सकते हैं।
जिस [के राजा बनने की कोई बात [सम्भावना] भी नहीं थी वह अब [वैववशात प्राज] राजराजेश्वर बन रहा है और [जो राज-राजेश्वर था] उसने भाग्यके कारण बुद्धिभ्रष्ट हो जानेसे [जुए में राजपाटको हारकर अन्तमें अपनी प्रियतमा दमयन्तीको] वनमें छोड़ दिया। फिर देवता लोग अप्सराओंके सहित वनमें उससे मित्रता प्राप्त करनेके लिए संसारमें [भूतलपर] पहुंचे, इस प्रकारका [नल-दमयन्तीका] कथानक लोकमें प्रसिद्ध है।
इसमें पाचकका काम करनेवाले नलके भीतर देववश छोड़ी हुई दमयन्ती तथा राज्यप्राप्तिके मार्गमें पानेवाले विघ्नोंके कारण उत्पन्न विमर्श दिखलाया है।
क्रोधसे उत्पन्न [विमर्श का उदाहरण] जैसे वेणीसंहारके छठे अडूमें [कौरव-विजय रूप] कार्यके प्रायः सम्पूर्ण हो चुकनेपर भी भीमसेनके [अाज यदि मैं दुर्योधनको नहीं मार लंगा तो स्वयं प्राणत्याग कर दूंगा इस प्रकारको] बासी न होनेवाली [मर्थात दूसरे दिन
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org