Book Title: Natyadarpan Hindi
Author(s): Ramchandra Gunchandra, Dashrath Oza, Satyadev Chaudhary
Publisher: Hindi Madhyam Karyanvay Nideshalay Delhi
View full book text
________________
साक योर , शारस्परिक सम्बन्ध-निर्देशक उपयुक्त स्थलों के अतिरिक्त इस प्रस्थ में रस-विषयक कतिपय अन्य समस्या प्रसंगों की भी चर्चा की गयी है, जैसे--
(१) रस की महत्ता। 10 अनलित से इतर संचारिभावों तथा रसों का नाम-निदश । १३, नौ रसों का क्रम-निर्देश । (४) क्षार रस के दोनों भेदों का निर्णायक प्राधार । (५) अद्भुत रस की महत्ता एवं स्थिति । (६) शान्त रस का स्थायिभाव । (७) अभिनय मोर नट तथा प्रेक्षक । (८) रस की सुखदुःखात्मकता ।
अब इन प्रसंगों का दिग्दर्शन एवं सामान्य विवेचन प्रस्तुत है। (१) रस की महत्ता
प्रस्तुत ग्रन्थ में अनेक स्थलों पर यह निर्दिष्ट किया गया है कि रस नाटक में अपनी विशिष्ट महत्ता रखता है। इनमें से कुछ स्थलों पर रस को काव्य के अन्य उपकरणों-विशेषतः भलंकार-को अपेक्षा सर्वोत्तम उपकरण के रूप में स्वीकार किया गया है, जिनका उल्लेख पीछे यथास्थान किया चुका है । इस सम्बन्ध में अन्य उल्लेखनीय स्थल इस प्रकार है
(१) नाट्य का पन्थ रस की कल्लोलों से परिपूर्ण होता है।' (२) नाट्य का एक मात्र मापार रस ही है।'
(३) (नाटघ के) कथाभाग में विच्छेद न आने देना रस की परिपुष्टि के लिए किया पाता है।'
(४) 'प्रकरण' नामक रूपक में पुरानी बातों में भी कवि को रस की परिपुष्टि के लिए नयी बात और बढ़ा देनी चाहिए।
(५) कवि (नाटककार, प्रबन्धकार) की समप्र चेतना एकमात्र रस-विधान में ही संमग्न रहती है, वह रस-निवेश में सिद्धहस्त होता है।
उक्त स्थलों से स्पष्ट है कि ग्रन्थकारों को यह मानना अभीष्ट है कि रस नाटक का अनिवार्य तत्त्व है तथा नाटककार का एक-मात्र लक्ष्य इसी की ही पुष्टि एवं सिद्धि करना है । वस्तुतः
१. पन्या: x x x माटपस्य रसकल्लोलसंकुलः। हि० ना० ब० पृष्ठ ३ २. शम्मामात्रशरणाः शुरुकायो यमकलेवादीनामेव निबन्धमर्हन्ति, न तु रसंकशरणस्प
नाटयस्य । -वही, पृष्ठ ३२० ३. इतिवृत्तस्याविच्छेवः रसपुश्पर्षः। -यही पृष्ठ १९६ ४. पपि पत्र प्रात्तानं निवपते तत्रापि कविता रसपुष्टिहेतुरधिकावापो विषयः ।
-वही पृष्ठ २११ ५. रसविधान कवेतसः कः xxx रसनिवेशकव्यवसायिनः प्रबन्धकवयः xxxr
-वही, पृष्ठ १०५.१९७
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org