Book Title: Natyadarpan Hindi
Author(s): Ramchandra Gunchandra, Dashrath Oza, Satyadev Chaudhary
Publisher: Hindi Madhyam Karyanvay Nideshalay Delhi
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१६]
नाट्यदर्पणम
sa ईहामृगो वीथी चत्वारः सर्ववृत्तयः । त्रिवृत्तयः परे स्वष्टौ कैशिकी परिवर्जनात् ||४॥
'चकारः' सर्वपुरुषार्थफलत्वेन महापुरुषोपदेशार्हचरितत्वेन च प्रबन्धेषु नाटकप्रकरणयोः प्राधान्यमाह । 'अथ' - शब्दो नाटिकादिचतुष्ट्याद् अपूर्णसन्धित्वेन विष्कम्भक प्रवेशका योग्यत्वेन अनुपदेशार्हचरितप्रायत्वेन च उत्तरेषां पार्थक्यं · ज्ञापर्यात | 'अङ्क' इति उत्सृष्टिकाङ्की, न पुनरवस्थासमाप्त्यादिरूपः । श्रङ्कवतां मध्ये पाठात् छन्दोऽनुरोधाच्च एकदेशेनाभिधानम् ।
[ का० ३-४, सू० ३
'चत्वारः' इति प्रक्ररण्यन्ता व्यक्तिभेदाः । 'सर्वा' गुण प्रधानभावेन चतस्रोऽपि वृत्तयों भारती-सात्वती-आरभटी-कैशिक्यो वक्ष्यमाणलक्षणा यत्र । 'तिस्रो' भारतीसात्वती-आरभट्यो व्यस्ताः समस्ता वा वृत्तयो येषु । अत्र च येषु व्यायोग- समवकार- ईहामृग - डिमेषु एकस्या वृत्तेर्न र्लक्षणे प्राधान्यनिर्देशस्तेषु व्यक्तिभेदेन पृथक-पृथगेकैकस्या वृत्तेः कविस्वेच्छया प्राधान्य' निबध्यते । येषु तु भेदेषु भारण-प्रहसन - उत्सृष्टिकाङ्क वो षु यस्या वृत्तेः प्राधान्यनिर्देशस्तेषु प्रतिव्यक्ति तस्या एव प्राधान्यमपरयोगौणत्वमल्पत्वाभावो वा । 'कैशिक्याः' परि सामस्त्येन 'वर्जनं' अभावः । यद्यपि समवकारे शृङ्गारत्वमस्ति तथापि न तत्र कैशिकी । न खलु काममात्र शृङ्गारः, किन्तु विलासोत्कर्षः । न चासौ रौद्रप्रकृतीनां नेतृणाम् । शृङ्गारशब्दश्च तत्र काममात्रपर्यवसायीति ॥। ३-४||
होनेके कारण [ केवल सास्वतौ प्रारभटी तथा भारती इन] तीन प्रकारकी वृत्तियोंसे युक्त हो होते हैं । ३-४ ।
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[कारिका में 'प्रकरणं' के बाद झाया हुआ ] चकार, समस्त [ प्रर्थात् चारों प्रकारके ] पुरुषार्थीके प्रदान करने वाले होनेसे तथा महापुरुषोंके उपदेश-योग्य चरित्रसे युक्त होने के कारण [बारहों प्रकारके इन ] प्रबन्धों [प्रभिनेय-काव्यों] में नाटक तथा प्रकरणकी प्रधानताको सूचित करता है । [ 'प्रकररणों' के बाद प्रयुक्त हुआ ] अथ शब्द १. सम्पूर्ण [अर्थात् आगे कही जाने वाली पाँच प्रकारको ] सन्धियोंसे युक्त न होनेके कारण, २. विष्कम्भक तथा प्रवेशक [ इनके लक्षण मागे किए जायेंगे] के प्रयोग्य होनेसे, और ३. उपदेश प्रदान करनेमें असमर्थ चरित्रोंसे पूर्ण होनेके काररण [ व्यायोगसे लेकर वीथी पर्यन्त ] अगले श्राठ [ भेदों] का नाटकादि [ प्रथम चार भेदों] से भेद सूचित करता है। [कारिका में प्राए हुए ] 'प्रङ्क' शब्द से 'उस्सृष्टिकाङ्क' का [ ग्रहण करना चाहिए] अवस्था समाप्ति प्रादि रूप प्रङ्कोंका नहीं । प्रयुक्त [ नाटकादि ] के मध्यमें पठित होनेसे छन्दके अनुरोध से [ उत्सृष्टिकाङ्क पूरा शब्द न कहकर ] एकदेश [ श्रङ्क-पद] से कथन किया गया है ।
[चार] अर्थात् [नाटकसे लेकर ] 'प्रकरणी' पर्यन्त [ रूपकोंके ] व्यक्ति भेद । [सर्ववृत्तयः सब वृत्तियोंसे युक्त होते हैं। इसका अर्थ करते हैं] सब अर्थात् गुरणभाव या प्रधानभावसे भारती, सात्वती श्रारभटी तथा कैशिकी चारों वृत्तियाँ जिसमें रहती हैं। [वे नाटकादि चार भेद सब वृत्तियोंसे युक्त होते हैं । श्रागे 'त्रिवृत्तयः' का अर्थ करते हैं] तीन अर्थात् भारती, सात्त्वती तथा श्रारभटी [नामक तीन ] वृत्तियाँ अलग-अलग [ व्यस्त ] अथवा सम्मि
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