Book Title: Natyadarpan Hindi
Author(s): Ramchandra Gunchandra, Dashrath Oza, Satyadev Chaudhary
Publisher: Hindi Madhyam Karyanvay Nideshalay Delhi
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नाट्यदर्पणम्
६५ ]
पताका-निरूपण
इस कारिका के पूर्वार्द्ध-भाग में बीजरूप प्रथम उपायका वर्णन उत्तरार्द्ध-भाग में पताका रूप दूसरे उपायका वर्णन प्रारम्भ करते हैं। जा चुका है, पाँच उपायोंको चेतन तथा प्रचेतन भेदसे दो भागों में विभक्त पाँचों, साधनों में से बीज तथा कार्यरूप रूप दो उपायोंको प्रचेतन साधनों में प्रकारी तथा बिन्दु रूप तीन उपायोंको चेतन साधनों में गिना जाता है । 'बीज' रूप प्रचेतन साधनका वर्णन किया था इस लिए सामान्यतः उसके बाद दूसरे प्रचेतन साधन 'कार्य' का वर्णन करना चाहिए था । किन्तु मूल कारिका में 'बीज' के बाद 'पताका' का नामतः कथन या उद्देश्य किया गया है । इसलिए उद्देश क्रमसे ही उनके लक्षरण करना उचित मानकर 'बीज' के बाद 'पताका' का लक्षण किया गया है- पाँचों उपायोंका नामतः कथन या उद्देश करने वाली कारिकामें जो बीजके बाद पताकाका नाम रखा गया है वह कदाचित् छन्दोअनुरोधसे ही रखा गया है ।
पताका शब्दका प्रसिद्ध अर्थ ध्वजा है । परन्तु यहाँ वह अर्थ अभिप्रेत नहीं है । ध्वजा रूप पताका प्रचेतन पदार्थ है । यहाँ पताका शब्द से वेतन अर्थका ग्रहण किया गया है। इस लिए पताका शब्दका मुख्य प्रसिद्ध अर्थ यहाँ सङ्गत नहीं होता है । यहाँ नायकके कार्यकी सिद्धि में सहायता देनेवाले किसी चेतन व्यक्तिके लिए 'पताका' शब्दका प्रयोग किया गया है । जैसे रामचन्द्र, के चरित्र में सीतानयन प्रादि रूप कार्यकी सिद्धि में उनके सहायक सुग्रीव रहे हैं। 'इस लिए वे 'पताका' या 'पताका नायक' कहलाते हैं। पताका जिस प्रकार प्रसिद्धि तथा प्राशस्त्य की सूचिका होती है । इसी प्रकार पताका नायक भी प्रधान नायककी प्रसिद्धि तथा प्राशस्त्य श्रादिका सूचक होता है। इस लिए पताका के सदृश होने से उसको भी 'पताका' या 'पताका नायक' कहा जाता है ।
पताका और प्रकरी
[ का० २६, सू० २६
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'पताका' के साथ ही दूसरा शब्द 'प्रकरी' भी इन पाँचों उपायोंकी गणना में प्रयुक्त किया गया है । ये दोनों प्रधान नायकको कार्यसिद्धिमें उसके प्रधान सहायक होते हैं । इन दोनों में परस्पर यह अन्तर होता है कि 'पताका नायक' का अपना भी कुछ स्वार्थ होता है । भोर 'प्रकरी' का अपना कोई स्वार्थ नहीं होता है । 'पताका नायक' अपने स्वार्थको सिद्धिके साथ-साथ प्रधान नायकके कार्यकी सिद्धि में सहायक होता है । किन्तु 'प्रकरी' अपने किसी स्वार्थकी अपेक्षा न रखकर निरपेक्ष भावसे प्रधान - नायकका सहायक होता है । 'रामचरित' में सुग्रीव 'पताका नायक' है और जटायु 'प्रकरी' का उदाहरण है। सुग्रीव बालिसे अपने राज्य मौर अपनी पत्नीको वापिस दिलाने के स्वार्थको सिद्ध कर रामका सहायक बना है । प्रोर जटायु निरपेक्ष भावसे रामकी सहायता करता है। इस लिए स्वार्धसिद्धियुत होनेके कारण सुग्रीव 'पताका नायक' मोर केवल परार्थसिद्धि पर होने के कारण जटायु 'प्रकरी नायक' हैं । इसी अभिप्रायको लेकर आगे ग्रंथकार 'पताका' और 'प्रकरी' के लक्षण देते हैं । उनमें से भी पहिले वे पताकाका लक्षरण करते हैं ।
पताका और प्रकरी का दूसरा भेद
किया गया है। अब जैसा कि ऊपर कहा
किया गया है ।
और शेष पताका
पिछले प्रकरण में
पताका और प्रकरीका एक भेद तो यह हुआ कि पताका नायक के साथ स्वार्थका
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