Book Title: Natyadarpan Hindi
Author(s): Ramchandra Gunchandra, Dashrath Oza, Satyadev Chaudhary
Publisher: Hindi Madhyam Karyanvay Nideshalay Delhi
View full book text
________________
नाट्यदर्पणम् [ का० २५, सू० २१ अथ विष्कम्भकलक्षणानुवादेन प्रवेशक लक्षयति-- [सूत्र २२/--एवं प्रवेशको नीचैः परार्थैः प्राकृतादिना ।
एतौ प्रभूतकार्यत्वान्नाटकादिचतुष्टये ॥२५॥ एवमिति 'अङ्कानहस्य' इत्यादि सर्व विष्कम्भकलक्षणमत्रातिदिश्यते । केवलमसौ नीचैरेव पात्रैः परार्थं मुख्यनायकादिकार्यनिष्ठेनं पुनः स्वकृत्यैकतत्परैः । यथा
"आणत्त म्हि भट्टदारियाए इत्यादि।
[श्राज्ञप्तास्मि भर्तृ दारिकया इत्यादि । इति संस्कृतम्]" प्रवेशकका लक्षण
अर्थोपक्षेपकोंमें विष्कम्भकके बाद दूसरा स्थान 'प्रवेशक' का प्राता है । विष्कम्भकके जो कार्य बतलाए गए हैं प्रायः वे ही सब कार्य 'प्रवेशक' के द्वारा भी सम्पन्न किए जाते हैं । फिर भी उन दोनोंको अलग-अलग माना गया है इसका कारण उनके स्वरूप में कुछ भेदका होना है। इनका पुख्य भेद यह है कि प्रवेशकमें केवल नीच पात्रोंका प्रयोग होता है। और विष्कम्भक में केवल मध्यम, या नीच मोर मध्यम दोनों प्रकारके पात्रोंका प्रयोग होता है । विष्कम्भक में केवल नीच पात्रों का प्रयोग नहीं होता है। इन भेदोंका परिचय आगे दिए जाने वाले लक्षण से ही मिलेगा। अतः ग्रन्थकार आगे प्रवेशकका लक्षण निम्न प्रकार करते हैं
अब विष्कम्भकके लक्षणका अनुवाद करते हुए प्रवेशकका लक्षण दिखलाते हैं
[सूत्र २१]--इस प्रकार [अर्थात् अङ्कानह प्रकोंमें न दिखलाने योग्य त्रिकालवर्ती प्रर्थको सूचित करने वाला] दूसरोंके लिए कार्य करने वाले [अर्थात् स्वामी आदिको प्राज्ञाके मनुसार कार्यमें नियुक्त] नीच पात्रों [दास-दासी प्रादि] के द्वारा संस्कृतसे भिन्न प्राकृत प्रावि [भाषामोंके प्रयोग से [शक्यसन्धानातीतकालके अर्थको सूचित करने वाला] 'प्रवेशक' होता है। [इतना प्रवेशकका लक्षण हुआ] अधिक कार्य के साधक] होनेके कारण नाटकादि चारमें अर्थात् नाटक, नाटिका, प्रकरण और प्रकरणी इन चारमें], अनावश्यक या अङ्कानह भागको संक्षिप्त करके सूचन करनेके लिए विष्कम्भक और प्रवेशक इन दोनों अर्थोपक्षेपकों का अवलम्बन किया जाता है ।२५॥
इस प्रकार 'एवं' इस पहसे 'अङ्कानहस्य' इत्यादि विष्कम्भकका सारा लक्षण यहाँ [प्रवेशकमें] सम्बद्ध होता है [अन्यधर्मस्यान्यत्राभिसम्बद्धो प्रतिवेशः। अन्यके धर्मका अन्यत्र सम्बन्ध दिखलाना 'प्रतिदेश' कहलाता है। विष्कम्भकके सारे धर्मोंका प्रवेशकके साथ सम्बन्ध प्रदर्शन रूप 'प्रतिवेश किगा गया है। उन दोनोंमें अन्तर केवल इतना है कि यह प्रवेशक] केवल नीच और दूसरोंके कार्यमें लगे हुए अर्थात मुख्य नायक प्रादिके कार्य में संलग्न, न कि स्वयं अपने कार्यमें लगे हुए पात्रोंके द्वारा [प्रयुक्त होता है] जैसे
बंसी कि स्वामिपुत्रीने प्राज्ञा दी है [तदनुसार मैं अमुक कार्य कर रही हूं] इत्यादि [पीच पात्र बेटी मावि द्वारा प्रयुक्त प्रवेशकका उदाहरण है।
इस प्रकार विष्कम्भकसे प्रवेशकका एक भेद तो यह हुमा कि विष्कम्भकमें मध्यम पात्रोंका उपयोग भी होता है और नीच पात्रों का भी प्रयोग हो सकता है। किन्तु प्रवेशक
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org