Book Title: Natyadarpan Hindi
Author(s): Ramchandra Gunchandra, Dashrath Oza, Satyadev Chaudhary
Publisher: Hindi Madhyam Karyanvay Nideshalay Delhi
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यालाच ।
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नाट्यदर्पणम् [ का० २८, सू०२५ श्रथ अानन्तरोदिष्टमुपायं व्याचष्टे[सूत्र २५]--बीजं पताका प्रकरी बिन्दुः कार्य यथारूचि ।
फलस्य हेतवः पञ्च चेतनाचेतनात्मकाः ॥२८॥ ___ उपायस्वरूपापरिज्ञाने तद्विषयाणामारम्भादीनां स्वरूपपरिज्ञानासम्भव इति उपायस्वरूप. व्युत्पाद्यते । 'यथारुचि' इति नैषामौदेशिको निबन्धक्रमः, सर्वेषामवश्यम्भावित्वं वा ।. 'फलस्य' मुख्यसाध्यस्य 'हेतव' उपायाः। इह हेतुविधा अचेतनश्चेतनश्च । अचेतनोऽपि मुख्यामुख्य भेदाद द्विधा । मुख्यो बीजम्, तन्मूलत्वादितरेषाम् । अमुख्यस्तु कार्यम् । चेतनोऽपि द्विधा मुख्य उपकरणभृतश्च । मुख्यो वतार [का ग्रहण होता है । 'कमात्' इस परसे लक्षणके क्रमसे [प्रङ्कास्य चूलिका प्रशावतारका प्रहरण करना चाहिए। स्वेच्छया नहीं यह अभिप्राय है] । बहुत तथा बहुकाल व्यापी [मर्थक] सूचनीय होनेपर प्रादिके दो अर्थात् विष्कम्भक और प्रवेशक [प्रयुक्त होते हैं] । अल्प और अल्पकालीन [अर्थक सूचनीय] होनेपर अङ्कास्य, [उससे भी कम] अल्पतर और मल्पतर-कालीन [अर्थके सूचनीय] होनेपर चूलिका, तथा [उससे भी कम अल्पतम और अल्पतम-कालीन [अर्थक सूचनीय] होनेपर अलावतार का प्रयोग किया जाना चाहिए यह अभिप्राय है । २७ ॥
इस प्रकार इस कारिकाको समाप्तिके साथ पांचों पोंपक्षेपकोंका विषय-विवेचन समाप्त हो जाता है। पांचवीं कारिकामें नाटकका जो लक्षण किया गया था उसकी ही व्याख्या मागे चल रही है। इसमें 'मर' पद पाया था उसकी व्याख्याके प्रसङ्ग में इन विष्कम्भक मादि पर्थोपक्षेपकोंका निरूपण किया गया। उसके द्वारा नाटक के लक्षण में पाए हुए 'म' पदकी व्याख्या पूर्ण हो जाती है। नाटक-लक्षण वाली कारिका में 'मङ्क' पदके बाद 'उपाय' पदका प्रयोग किया गया है। प्रत एव अङ्क पदकी व्याख्याके बाद 'उपाय' पदकी व्याख्या क्रम-प्राप्त है । इस लिए अगली कारिकामें 'उपाय' पदकी व्याख्या प्रारम्भ करते हैं।
इस कारिकामें पांच प्रकारके उपाय बतलाए गए हैं। परन्तु पहिले उनके चेतन पौर मचेतन दो भेद किए हैं। उनमें से प्रचेतन उपायोंके भी मुख्य तथा प्रमुख्य दो भेद किए है। फिर चेतन उपायोंके भी मुख्य तथा उपकरणभूत दो भेद करके उनमेंसे उपकरण भूतके भी दो भेद कर दिए हैं। इस प्रकार उपायोंकी संख्या पांच हो जाती है। इन पांचों उपायों का वर्णन इस कारिकामें निम्न प्रकारसे किया है
___ अब [नाटक-लक्षणमें] अङ्कके बाद कहे हुए 'उपाय' [पद] की व्याख्या [प्रारम्भ]
[सूत्र २४]-१. बीज, २. पताका, ३. प्रकरी, ४. बिन्दु और ५. कार्य [पताका प्रकरी और बिन्दु ये तीन चेतन तथा बीज एवं कार्यको दो अचेतन इस प्रकार] ये चेतन और प्रचेतनारमक फलके हेतु पाँच ['उपाय' कहलाते हैं [उनका अपनी रुचिके अनुसार [प्रयुक्त] करे।२८॥
उपायोंके स्वरूपको जाने बिना उनके सम्बन्धमें प्रारम्भाविके स्वरूपका परिमान भी पसम्भव है, इस लिए 'उपायों के स्वरूपका परिचय करवाया जा रहा है । [कारिकामें पाए
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