Book Title: Natyadarpan Hindi
Author(s): Ramchandra Gunchandra, Dashrath Oza, Satyadev Chaudhary
Publisher: Hindi Madhyam Karyanvay Nideshalay Delhi
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का० ६, सू०५ ] प्रथमो विवेकः अथ राजशब्दं व्याख्यातु सामान्येन नेतुः स्वरूपमाह[सूत्र ५]-उद्धृतोदात्त-ललित-शान्ता धीरविशेषणाः ।
वाः स्वभावाश्चत्वारो नेतृणां मध्यमोत्तमाः ॥६॥ 'धीरो' धैर्य महाव्यसनेऽप्यकातयं विशेषणं येषां उद्धतादीनां, धीरोद्धत-धीरोदात्त-धीरललित-धीरप्रशान्ता इत्यर्थः। एवं नाम कविवर्णात । जन्मोत्विवाग्तु स्वभावा नेतृणां यथा-तथा वा सन्तु । 'नेतणाम' इति बहुवचनात् प्रायेणेकेकस्मिन् धर्मिण्येकेकः स्वभावः, क्वचिदेव तु चत्वारः । 'मध्यमोत्तमा' इति-यद्यपि स्वस्थाने सर्वमपि उत्तममध्यमाधमभेदेन त्रिधा, तथापि धीरोद्धतादयः स्वभावा उत्तममध्यमभेदेनैव वर्णनीया इति ॥ ६॥
___ इस ग्रन्थ के निर्माता रामचन्द्र-गुणचन्द्रने इस नाटकके लक्षण-सूत्रकी रचनामें अपने कौशलका बड़ा अच्छा परिचय दिया है । अन्य ग्रंथों में जहां नाटकका लक्षण किया गया है वहां कई श्लोक इसके लक्षण रूपमें लिखे गए हैं। स्वयं भरतमुनिने अनेक श्लोकोंमें नाटकका लक्षण इस प्रकार किया गया है-- .
प्रख्यातवस्तुविषयं प्रख्यातोदात्त-नायकं चैव । राजर्षिवंश्यचरितं तथैव दिव्याश्रयोपेतम् ॥१०॥ नानाविभूतिभिर्युतं ऋद्धिविलासादिभिगुणैश्चैव। . अंकप्रवेशकाध्य भवति हि तन्नाटकं नाम ॥१॥ नृपतीनां यच्चरितं नाना रस-भाव-चेष्टितं बहुधा ।'
सुखदुःखोत्पत्तिकृतं भवति हि तन्नाटक नाम ॥१२॥० ॥ किन्तु यहाँ ग्रन्थकारने केवल एक ही श्लोकमें नाटकके लक्षणको सर्वांग-पूर्ख बना दिया है । यह उनके रचना-कौशलका द्योतक है। नायकके चार भेद
अब राज शब्द [अर्थात् नायक की व्याख्या करनेकेलिए सामान्य रूपसे नायको स्वरुपका वर्णन करते हैं
[सूत्र ५]-नायकोंके धौर विशेषणसे युक्त उद्धत, उदात्त, ललित और प्रशांत [अर्वात धौरोत, धीरोदात्त, धोरललित और धीरप्रशांत] चार प्रकारके स्वभाव [केवल मध्यम तवा उत्तम [दो रूपोंमें] ही वर्णन करने चाहिए [अधम नहीं] ॥६॥
धीर अर्थात् धैर्य अर्थात् भारी विपत्तिमें भी न घबड़ाना, जिनका विशेषख है बे, अर्थात धोरोखत, पोरोवात्त, घोरललित तथा धीरप्रशांत [इन चार प्रकारके नायक-स्वमार्योका वर्णन करना चाहिए। इस प्रकारका [स्वभावोंका] वर्णन [केवल] कवि [अपने नाटकमें] करता है। [उन्हीं] नायकोंके जन्मसे उत्पन्न स्वभाव चाहे जैसे हों। 'नेतृणाम्' इस बहुवचन के निशसे [यह प्रतीत होता है कि] प्रायः एक-एक व्यक्ति में एक-एक प्रकारका ही स्वभाव [साव्य-नाटक में होता है । चारों स्वभाव तो कहीं [विरले ही पाए जाते हैं । मध्यमोतमा' इससे [पदसे यह सूचित होता है कि यद्यपि अपने-अपने स्थानपर सब ही [वस्तुएँ] उत्तम, मध्यम और अधम भेवसे तीन प्रकारकी होती हैं। [इसलिए धीरोद्धत प्रादिके भी ये तीन
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