Book Title: Natyadarpan Hindi
Author(s): Ramchandra Gunchandra, Dashrath Oza, Satyadev Chaudhary
Publisher: Hindi Madhyam Karyanvay Nideshalay Delhi
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( ७१ )
मात्र माधार है काव्यचमत्कार की प्रपुष्टि । मम्मट प्रस्तुत यह पथ' इस बाधार पर भले ही सदोष हो, पर इस कारण कदापि सदोष नहीं मानना चाहिए कि इसमें 'उत्साह' शब्द का प्रयोग हुमा है, प्रथवा 'प्रमोद' शब्द रख देने से यह प्रपुष्टि दूर हो जाएगी और यह सदोष न रहेगा ।
(s) वस्तुतः इस दोष की स्वीकृति का मूल उद्देश्य व्यङ्गपायं की महत्ता स्पष्ट करना है । यतः यदि रस, स्थायिभाव आदि का प्रयोग न किया जाए तो यह प्रादर्श स्थिति है, विभावादि की परिपक्वता में इनका प्रयोग सदोष नहीं है तथा इनकी अपरिपक्वता में दोष है ।
अतः रामचन्द्र गुणचन्द्र की उक्त धारणा प्रांशिक रूप से प्राह्म है-पूरात नहीं ।
(२)
अब दूसरे दोष को लें - ' विभाव की कष्टकल्पना द्वारा व्यक्ति (अभिव्यक्ति)।' इस दोष का मम्मट तथा रामचन्द्र- गुणचन्द्र ने निम्नोक्त उदाहरण प्रस्तुत किया है
परिहरति रति माँत सुनीते स्वलतितरां परिवर्तते च भूयः । इति बत विषमा वंशा स्वदेहं परिभवति प्रसभं किमत्र कुर्मः ॥
अर्थात् यह नायिका किसी प्रकार की रुचि नहीं रखती, इसकी बुद्धि क्षीण हो गयी है, यह निरन्तर गिरती पड़ती है तथा बार बार करवटें बदलती है । इस प्रकार इसके देह की मवस्था प्रत्यन्त विषम है, इसका क्या उपाय किया जाए ? -- इस कथन से यह सन्देह बना रहता है कि इस नायिका की यह दशा वियोग (रति) के कारण है अथवा शोक के कारण । अतः यह निश्चयपूर्वक नहीं कह सकते कि यह उदाहरण विप्रलम्भ शृंगार रस का है प्रथा करुण रस का । मम्मट ने इसे 'विभावस्य कष्टकल्पनया व्यक्ति' नामक रसदोष माना है औौर रामचन्द्र गुणचन्द्र ने 'सन्दिग्ध' नामक वाक्यदोष । नाट्यदर्पण में रसदोषों के अतिरिक्त अन्य दोषों का निरूपण नहीं किया गया । काव्यप्रकाश में वाक्यगत सन्दिग्ध का उदाहरण है—
कस्मिन् कर्मरिण सामर्थ्यमस्थ मोसपतेतराम् ।
यं साधुचरस्तस्माद् अञ्जलिर्वस्यतामिह । का० प्र०७/२०५
अर्थात्, इस पुरुष की शक्ति किस कार्य में प्रकट नहीं होती ? यह व्यक्ति तो 'साधुचर' है । मठ: इसे नमस्कार कीजिए । 'साघुचर' से यह स्पष्टतः प्रकट नहीं होता कि वह साधुयों में घूमता-फिरता है' अथवा 'पहले साधु रहा है।' मतः यहां मम्मट के मत में वाक्यगत सन्देह है। निस्सन्देह उक्त 'परिहरति रतिपद्य में इस प्रकार का सन्देह नहीं है। यहां रस-विषयक सन्देह है वाक्यविषयक नहीं ।
इसी प्रसंग में भंगत सन्देह का उदारहण भी द्रष्टव्य है
मात्सर्यमुत्सार्य विचार्य कार्यमार्याः समर्यादमुदाहरन्तु ।
har: मितम्बा: fear भूधराणामुत स्मरस्मेरविलासिनीनाम् ॥ का० प्र० ७ / २६२
१० संप्रहारे
२. का० प्र० ७ / ३२६, मा० ० ३ / २३ वृति |
प्रहरणं । महाराणाम्परस्परम् ।
ठत्कारैः भूतिसाहस्तस्य कोऽप्यभूत् ॥ का० २०७/२२४
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