Book Title: Natyadarpan Hindi
Author(s): Ramchandra Gunchandra, Dashrath Oza, Satyadev Chaudhary
Publisher: Hindi Madhyam Karyanvay Nideshalay Delhi
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इसका कारण सम्भवता मानन्दवन का यह कथन प्रतीत होता है कि पनौचित्य के बिना रसमज का कोई अन्य कारण नहीं होता-"मनोचिस्या ऋते नान्यम् रसभङ्गस्य कारणम् ।" (वन्या. ३/१४ वृत्ति) प्रानन्दवर्डन ने रसभंग पोर पनौचित्य में परस्पर सम्बन्ध जोड़ा तो रामचन्द्र-गुणचन्द्र ने इसे 'रसदोष' का ही समानार्थक मान लिया। इसी प्रसंग में यह ज्ञातव्य है कि मनौचित्य शब्द का दोषं के अर्थ में सम्भवतः सर्वप्रथम प्रयोग महिमभट्ट ने किया था तथा इसके मनेक भेदों की भी चर्चा की थी, किन्तु वहाँ न तो इसे रसदोष के पर्थ में प्रयुक्त किया गया है और न ही इसके भेद रसदोष ही है। वहां तो इसे काव्य-दोष के सामान्य मर्य का ही वाचक माना गया है । (देखिए व्यक्तिविवेक २य विभशं)
हाँ, प्रस्तुत ग्रन्थ में निम्नोक्त स्थल पर 'पनौचित्य' शब्द का प्रयोग क्षेमेन्द्र-सम्मत 'भोचिस्य' के प्रभावात्मक रूप में भी उपस्थित किया गया है-"प्रहसन नामक रूपक केवल हास्य रस का ही विषय है । यह शुगार रस का विषय नहीं हो सकता, क्योंकि [इस रूपक के मुख्य पात्रों] निन्दनीय पाखण्डी प्रादि का जुगार रस के रूप में निरूपण करना भनौचित्य (प्रौचित्य के प्रभाव) का सूचक है-निन्यपालभितीनां शगारस्याऽनौचित्येनाभावात् केवलहास्यविषयत्वमेव । (पृष्ठ ३२१) उधर क्षेमेन्द्र मी रस के पीचित्य के विषय में प्रत्यन्त माग्रहशील है
कुर्वन् सलिये व्याप्तिमौचित्यचिरो रसः ।
मधुमास इवाशोकं करोत्यंकुरितं मनः॥ भौचित्य विचारचर्चा-१६ तथा वे रसों के पारस्परिक संयोजन में मनौचित्य को इष्टकर नहीं मानते
तेषां परस्पराइलेवात् कुर्यादौचित्यरक्षणम् ।
मनोचिस्येन संस्पृष्टः कस्येष्टो रससंकरः ॥ -वही, १८ ८. दोष
पीछे निर्देश कर पाये है कि इस ग्रन्थ में पांच रस-दोषों का निरूपण किया गया है। इस प्रसंग के अतिरिक्त दोष पर मन्यत्र विशिष्ट प्रकाश नहीं गला गया। इस प्रसंग में अन्धकारों ने उक्त पांच रसदोषों के मेवोपभेदों का निस्पण किया है जिन्हें इनसे पूर्व मम्मट ने भी थोड़े-बहुत पन्टर के साथ उल्लिखित किया था। इस प्रसंग की दो उल्लेखनीय विशेषताएं है-(१) रसादि की स्वशनोक्ति को दोष न मानना, तथा (२) विमाव की कष्टकल्पना द्वारा व्यक्ति को मम्मत के समान रसदोष न मानकर 'सन्दिप' नामक वाक्यदोष मानना । ये दोनों स्वल विचारणीय है।
(१३) रसादि की स्वयम्बोक्ति का सर्वप्रथम उल्लेख यूट ने अपने 'काव्यालंकारसारसंग्रह में रस प्रकार का लक्षण प्रस्तुत करते हुए इन समों में किया पा
रसबहक्षितस्यामनाराविरसावयम् ।
समत्वापिसंचारिविमायाभिनयात्परम् ॥ का..... " १. पहला ए-हि० गाउपाहा. २१९ ।
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