Book Title: Natyadarpan Hindi
Author(s): Ramchandra Gunchandra, Dashrath Oza, Satyadev Chaudhary
Publisher: Hindi Madhyam Karyanvay Nideshalay Delhi
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१७. पार्षविजयम्-नाटपर्पण के प्रथम विवेक में प्रतिमुख सन्धि के पाठ ग्रंग 'ताप' तथा 'अनुमर्पण' के निरूपण के प्रसंग में 'यथा पार्थ विजये' लिख कर तीन बार 'पार्थविजय के उद्धरण दिए गए हैं। भोजराज के 'शृंगार प्रकाश में भी [५० १२, प्रा० वि० पृ० १६४, १६७. १९१] साम, दूत रूप सन्ध्यंगो के उदाहरण रूप में पार्थविजय' के कुछ घंश उद्धृत किए गये है।
__ "तत्र पुमोऽपि ह्रीः यथा 'पार्थविजये' गन्धर्वः पराजितस्य बद्धस्य अर्जुनेन विक्रम्य मोचितस्य दुर्योधनस्य ।" "तत्र साम यथा पार्थविजये' भगवान् वासुदेवो दौत्येन गतो दुर्योधनमाह"
शृगारप्रकाश प्र० १२, प्रा० वि० पृ० १९७, १६.] 'सूक्तमुक्तावली' में राजशेखर के नाम से निम्न पद्य उद्धृत हुप्रा है
कतुं त्रिलोचनादन्यः कः पार्षविजयं क्षमः । तदर्थः शक्यते द्रष्टुं लोचनयिमिः कथम् ।।"
सूक्तमुक्तावली पि० रि० २, ६३] इस श्लोक से प्रतीत होता है कि इस 'पार्थविजय' के निर्माता त्रिलोचन कवि है। प्रसिद्ध दार्शनिक वाचस्पति मिश्र ने 'न्यायवातिक तात्पर्यटीका' में 'त्रिलोचनगुरूनीतमार्गानुगमनोन्मुखः' लिख कर त्रिलोचन अपना गुरु घोषित किया है। इन्हीं त्रिलोचन कवि का बनाया हुमा यह पार्थविलय' नाटक था। किन्तु इस समय तक उपलब्ध या प्रकाशित नहीं हुमा है।
१८. पुष्पदूतिकम् --'नाट्यदर्पण' के प्रथम तथा द्वितीय विवेक में कुल मिला कर माठ स्थानों पर 'पुष्पगुतिकम्' के नाम तथा उसके उद्धरण दिए गए हैं। 'वक्रोक्तिजीवित' का जो उद्धरण हम 'कृत्यारावण' के विवेचन के प्रसंग में पृष्ठ ३८ पर दे पाए है उसमें भी 'पुष्प दूतिक' का नाम पाया है। अभिनवभारती [अ० १८ पृ. ४३२] तथा 'दशरूपकावलोक' [प्र० ३, श्लोक ४५] में 'पुष्पतिक' का उल्लेख पाया जाता है। इसमें समुद्र दत्त नामक परिणक नायक और कुलस्त्री रूप नन्दयन्ती नायिका की कथा दी गई है । विविध ग्रन्थों में इसके उद्धरण मिलने पर यह ग्रन्थ प्राज उपलब्ध या प्रकाशित नहीं है।
१९. प्रतिमानितम्-'नाट्यदर्पण' के प्रथम विवेक के अन्त में-'श्री भीमदेवसूनोवंसुनागस्य कृतो प्रतिमानिरुद्ध' इन शब्दों में 'प्रतिमानिरुद्ध' नाटक का निर्देश किया गया है। अभिनवभारती [५० १६, पृ० ३] में भी भीमदेव-सूनु वसुनाग की कृति के रूप में 'प्रतिमानिरुद्ध' का निर्देश किया गया है। 'वक्रोक्तिजीवित' में केवल नाटक के नाम का उल्लेख पाया जाता है : वल्लभदेव-संगृहीत 'सुभाषितावली' में [श्लोक १२७४, १२८३, १३६३] तीन एलोक वसुनाग कृत उद्धृत किए गए है । 'प्रतिमानिरुद्ध' के निर्माता वसुनाग के ही बनाए हुए प्रतीत होते हैं । यह नाटक भी इस समय उपलब्ध नहीं है।
. २०. प्रयोगाम्युक्यम्--नाट्यदर्पण के द्वितीय विवेक में 'वीथी' के चतुर्थ अंग 'प्रपंच' के निरूपण के प्रसंग में विदूषक और चेटी का संवाद 'प्रयोगाभ्युदय' से उद्धृत किया गया है। इससे प्रतीत होता है कि यह 'वीथी' श्रेणी का रूपक है। भोजदेव के 'भंगारप्रकार
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