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लब्धिसार
उत्कृष्टस्थितिबंधे आबाधाग्रात्ससमयामावलिकाम् ।
अवतोर्य निषेकेषत्कर्षेषु अवरमावलिकम् ॥६६॥ सं० टी०-उत्कृष्टस्थितिबंधे तत्कालबध्यमानसमयप्रबद्धे आबाधाग्रादाबाधांत्यसमयात् ससमयावलिकामवतीयं तत्सामान्यसमयप्रबद्धनिषेकस्योत्कर्षणे आवलिमात्रं जघन्यमतिस्थापनं भवति । आबाधागतामावलिकामतिक्रम्य उपरि निषेकेषु अंतिमातिस्थापनावलि मुक्त्वा सर्वत्र निक्षीपतीत्यर्थः ।।६६।।
स० चं०-उत्कृष्ट स्थिति लीएँ जो उत्कर्षण करनेके समयविष बंध्या समयप्रबद्ध ताकी आबाधाकालका जो अग्र कहिए अंत समय तोहिसेती लगाय एक समय अधिक आवलीमात्र समय पहलैं उदय आवने योग्य असा जो पूर्व सत्ताका निषेक ताका उत्कर्षण करतें आवलीमात्र जघन्य अतिस्थापन हो है, जात तिस द्रव्यकौं आबाधावि जो एक आवलोमात्र काल रह्या ताकौं अतिक्रम्य कहिए उल्लंधिकरि तिस बंध्या समयप्रबद्धक प्रथमादि निषेकनिविर्षे अंतवि अतिस्थापनावली छोडि निक्षेपण करिए है। अंक संदृष्टिकरि जैसैं हजार समयकी स्थिति लीएं समयप्रबद्ध बंध्या ताका पचास समय आबाधा काल ताके अंत समयतें लगाय सतरह समय पहले उदय आवने योग्य असा वर्तमान समयतें चौंतोसवां समयविर्षे उदय आवने योग्य पूर्व सत्ताका निषेक ताका उत्कर्षण करि तत्काल बंध्या समयप्रबद्धका आबाधाकाल व्यतीत भएपीछे प्रथमादि समयविर्षे उदय आवने योग्य नवसै पचास निषक तिनिविर्षे अन्तके सतरह निषेक छोडि प्रथमादि नवसै तेतीस निषेकनिविष निक्षेपण करिए है । इहां उत्कर्षण कीया निषेकनिके अर दीया प्रथम निषेकके वीचि अंतराल सोलह समयका भया सोई जघन्य अतिस्थापना जानना ।। ६६ ॥
ओदरिय तदो विदीयावलिपढमुक्कड्डणे वर हेट्ठा । अइच्छावणमाबाहा समयजुदावलियपरिहीणा ।।६७।। अवतीर्य ततो द्वितीयावलिप्रथमोत्कर्षणे वरमधस्तना। अतिस्थापना आबाधा समययुतावलिकपरिहीना ॥६७॥
सं० टी०-ततस्ततः अधोऽवतीयं अन्यस्य सत्त्वसमय प्रबद्धस्य द्वितीयावलिप्रथमनिषकोत्कर्षणे अधःसमययतावलिपरिहीणा आबाधा उत्कृष्टातिस्थापनं भवति । समयाधिकावलिहीनामाबाधामतिक्रम्य उपरि निषेकेषु अग्रे समयाधिकावलि मुक्त्वा निक्षिपतीत्यर्थः ॥६७।। एवं प्रसंगायातमपकर्षणोत्कर्षणविषयजघन्योत्कृष्टनिक्षेपातिस्थापनलक्षणप्रमाणविषयानाचार्यान्तराभिप्रायं च व्याख्याय अथ प्रकृतगणश्रेणिनिर्जराविधानं प्रक्रमते
स० चं०-तहांतें उतरि तिसत पहिले उदय आवने योग्य जैसा अन्य कोई सत्तारूप समयप्रबद्धसम्बन्धी द्वितीयावलीका प्रथम निषेक जो वर्तमान समयतें आवलीकाल भएं पीछे उदय आवने योग्य है ताका उत्कर्षण होतें नीचे एक समय अधिक आवलोकरि होन आबाधाकाल प्रमाण उत्कृष्ट अतिस्थापन हो है। समय अधिक आवलीकरि हीन जो आबाधा ताकौं उल्लंधि ऊपरिके जे निषेक तिनिविष अंतके अतिस्थापनावलोमात्र निषेक छोडि अन्य निषेकनिविर्षे तिस द्रव्यकौं दोजिए है। इहां पूर्वोक्त प्रकार अंक संदृष्टि आदिकरि कथन जानि लेना। असे प्रसंग पाइ इहां उत्कर्षण अपकर्षण अपेक्षा निक्षेप अतिस्थापनका विधान कह्या । सो जहां उत्कर्षणकरि बा
१. जयध० भा० १२, पृ० २५६ ।
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