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क्षपणासार
स० चं० - वीरनंदि अर इन्द्रनन्दिका वत्स जो मैं नेमिचन्द्र आचार्य सो जाके चरणनिका प्रसाद करि अनन्त संसार समुद्र पार भया तिस अभयनन्दि नामा गुरुकों मैं नमस्कार करौ हों ॥
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ऐसें लब्धिसार नामा शास्त्र के जे गाथासूत्र तिनका अर्थ उपशमश्रेणीका व्याख्यान पर्यंत संस्कृत टीकाके अनुसारि अर क्षपकका व्याख्यान क्षपणासार के अनुसारि इहाँ अपनी बुद्धि माफिक मैं कीया है । इहां जो चूक होइ ताकौं सम्यग्ज्ञानी जीव शुद्ध करियो । बहुरि इस शास्त्रका अभ्यासतें दर्शन चारित्रकी लब्धिका स्वरूप जानि आप स्वरूप श्रद्धान आचरण सम्यग्दर्शन चारित्रका धारक होइ केवलज्ञानकौं पाइ सर्व कर्मकों नाशकर उत्कृष्ट ज्ञानानन्दमय कृतकृत्य अवस्थारूप सिद्ध पदकौं प्राप्त होइ ।
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दोहा
सम्यग्दर्शन चरण के कारण कर्ता कर्म । फल भोक्ता मम देहु सब अपनौ अपनौ धर्म ॥१॥ चौपाई
मंगल तत्त्वनिको श्रद्धान, मंगल है फुनि सम्यग्ज्ञान । मंगल शुद्ध चरित्र अनूप, इनके धारक मंगलरूप ||१||
इति श्रीलब्धिसारक्षपणासारख्याख्यानं ।
संपूर्णम् ।
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