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लब्धिसार-क्षपणासार बहुरि तहां जघन्य स्थानके अविभागप्रतिच्छेद अनंतगुणी जीव राशिमात्र ऐसे १६ । ख । यातें अनन्त जीव राशिगुणा उत्कृष्ट स्थानके ऐसे १६ । ख । १६ । ख । सर्व स्थान असंख्यात लोकमात्र ऐसेंEa इन विौं एक अधिक आवलीका असंख्यातवां भागकों पांचबार माढि २२२२२
aaaaa परस्पर गुण जेता होइ तिनविर्षे एकबार षट्स्थानपतित वृद्धि होइ तो सर्व स्थानविौं केती होइ ऐसें त्रैराशिक कीएं एतीवार होइ- = a बहुरि तहां प्रतिपात प्रतिपद्यमान अनुभय
१- १- १- १- १२ २ २ २ २
alalalala स्थान क्रमतें हैं इनके बोचि बीचि असंख्यात लोकमात्र स्वामी रहित अंतर स्थान हैं तिनकी संदृष्टि ऐसी = a। बहुरि तिन स्थाननिको संदृष्टिविणे आदि जघन्य लिखि मध्य स्थाननिके अथि बीचिमें विदो लिखि अंतविणे उत्कृष्ट लिखना । बहुरि ए स्थान नारककें तौ सर्व संभवे हैं अर तिर्यचके केते इक मध्यस्थान ही संभव है, तातें तिनके आदि अक्षरकी संदृष्टि करनी । बहुरि जघन्यतै लगाय मनुष्य हीके संभवते अर मध्यविौं तिर्यचकें संभवते अर अंतविणें मनुष्यही संभवते स्थान प्रत्येक असंख्यात लोकमात्र हैं । तिनकी संदृष्टि ऐसी = 2। ऐसें कीएं तिन स्थाननिकी ऐसी संदृष्टि हो हैप्रतिपातस्थान
अं प्रतिपाद्यमानस्थान ज००००००००००० उ
aज ००००००००००० उ न = ज०००० उ न । न = ज ०००० उ न ति = a ति
ति = ति ___ अनुभय स्थान ज ० ० ० ० ० ० ० ० ० ० ० उ न: ज ० ० ० ० उ=aन
ति = ति ऐसें देशसंयमलब्धि अधिकारविर्षे संदृष्टि जाननी । अब सकलचारित्र अधिकारविौं संदष्टि कहिए है-तहां देशसंयमविर्षे जैसें संदृष्टिनिका स्वरूप कया है तैसे इहां भी यथासंभव जानना। तहां प्रतिपातादि स्थाननिविणे विशेष है सो कहिए
मिथ्यादृष्टि असंयत देशसंयतविणे पडनेवालीकी अपेक्षा प्रतिपातस्थान तीन प्रकार है। तहां जघन्यादिकको संदृष्टि पूर्ववत् करनी अर तिनके बीचि अंतरालरूप स्थान असंख्यात लोकमात्र है तिनकी संदृष्टि करनी । बहुरि प्रतिपद्यमान स्थाननिविणै आर्य खण्डके मनुष्यके संभवते सर्व स्थान है अर म्लेच्छ खंडके मनुष्यके संभवते वीचिके स्थान हैं। तातें जैसे देशसंयतविर्षे मनुष्य तिर्यचविौं संभवते स्थाननिकी संदृष्टि करी थी तैसें इहां आर्य म्लेच्छ खंडनिके मनुष्यनिकें संभवते स्थाननिकी रचना करनी । इहां इनके आदि अक्षर लिखने । बहुरि अनुभय स्थाननिविर्षे सामायिक द्विकविौं संभवते सर्व स्थाननिविौं मध्यविौं संभवते परिहारविशुद्धिके स्थान हैं। तातें इहां भी पूर्ववत् संदृष्टि करनी। बहुरि ताके परे सूक्ष्मसांपरायके स्थान जघन्यादिरूप हैं । बहुरि ताके परे यथाख्यातका एक ही स्थान है । इनके बीचि बीचि अंतराल स्थान हैं तिनकी संदृष्टि करनी । ऐसे इनकी ऐसी संदृष्टि हो है ।
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