________________
५८२
लब्धिसार-क्षपणासार
ऐसे ही तृतीयादि कांडकविर्षे क्रम जातना। वहुरि तहां अनुभागकी यथासंभव संदृष्टि जाननी ऐस अपूर्व स्पर्धक क्रिया विधानविर्षे संदृष्टि कही। अब बादर कृष्टिकरण विधानविर्षे संदृष्टि कहिए है
तहां अंतर्मुहुर्तमात्र कालकौं संख्यातका भाग देइ बहुभागनिके तीन समान भागकरि अवशेष एक भागका संख्यात बहुभाग प्रथम समान भागविर्षे मिलाएं अश्वकरण काल है । अवशेष एक भागका संख्यात बहुभाग द्वितीय समान भागविर्षे मिलाएं कृष्टिकरण काल है। अवशेष एक भाग तृतीय समान भागवि मिलाएं कृष्टिवेदक काल है । तिनको संदृष्टि रचना ऐसी
नाम
कृष्टिवेदक
| अश्वकरण । कृष्टिकरण ।
२।११ २। ।
समभाग
।
देयभाग
२।१।१
१० २।२।१ १। ।
२।१
।।२
बहुरि च्यारयो कषायनिकी बारह संदृष्टि हो हैं । तिनका अनुभाग जाननेकौं अंकसंदृष्टि अपेक्षा पूर्व टीकामें कथन किया है। बहुरि मोहका द्रव्य ऐसा व १२ याकौं अपकर्षण भागहारका भाग दीएं अपकृष्ट द्रव्य ऐसा व १२ बहरि वर्गणा शलाकाके अनंतवे भागमात्र प्रथम समयविष कीनी
आ
कृष्टिनिका प्रमाण ऐसा ४ तहां इनकौं आठका भाग देइ एक भाग च्यारयो कषायनिका द्रव्य वा
कृष्टिका प्रमाण हो है । तहां लोभविष साधिक मायाविर्षे किंचिदून तातें भी क्रोधविर्षे किंचिदून तारौं मानविर्षे किंचिदूनपना जानना । बहुरि च्यारिभागमात्र नोकषाय संबंधी कृष्टि क्रोधविषे मिलाए तहां पांच भाग हो हैं । तिनको संदृष्टि ऐसी
लोभ
माया
मान
क्रोध
द्रव्य
व। १२ ८ । ओ
४ ख। ८
व। १२-व।१२। व।१२-५ ८। ओ । ८। ओ। ८। ओ
४ -५ ख ।८ । ख।८ । ख।८
कृष्टि
।
। ।
बहुरि अपना अपना द्रव्यका वा कृष्टि प्रमाणकौं पल्यका असंख्यातवां भागका भाग देइ तहां बहुभागके तीन समान भाग करने । बहुरि अवशेष एक भागकौं पल्यका असंख्यातवां भागका
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org