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अर्थसंदृष्टि अधिकार आगला. ऐसा प । १६ । प । गुणकार विषै ग्यारह घटावनेकी संदृष्टि कीएं जे पूर्व उभय
कृष्टि थों तिनविर्षे जे उभय कृष्टि होन रूप रहीं तिनिका प्रमाण ऐसा ४ । १३ । प १६प-११
aa ख । २४ । प।१६। प
aa हो है। बहुरि तिनके उपरि जे उदय रूप कृष्टि भई ते ऐसो-४ । १३ । ७ बहुरि
ख । २४ । प। १६ प
तिनके उपरि जे अनुभय कृष्टि भई ते ऐसी ४ । १३ । ४ बहुरि तिनके उपरि जे
ख । २४ प । १६ । प
aa पूर्वं उदय कृष्टि थी ते अनुभय रूप भईं। बहुरि तिनके उपरि जे पूर्व अनुभय कृष्टि थी ते अवुभय रूप ही रही। तिनको संदृष्टि पूर्ववत् जाननी । ऐसें द्वितीय समयविर्षे अवस्था भई तिनकी रचना ऐसी
पृ० ( ५९५ क) में देखो इहां गुणश्रेणि रूप क्रम अधिक निषेकनिको रचनाकरि तहां प्रथम निषेकविर्षे अनुभयादि कृष्टिनिविर्षे जघन्य मध्यम उत्कृष्टनिकी संदृष्टिकरि उपरि द्वितीय निषेकविर्षे रही - वा भई अनुभयादि कृष्टिनिकी रचना क्रमते करी है। ऐसे ही यथासंभव तृतीयादि समयनिविर्षे रचना जाननी। बहुरि लोभकी तृतीय संग्रह आदि क्रोधकी प्रथम संग्रह पर्यन्त बारह कृष्टिनिविर्षे द्वयर्ध गुणहानि गुणित आदि वर्गणामात्र द्रव्य ऐसा (व १२ ) अर साधिक
वर्गणा शलाकाके अनन्तवै भागमात्र कृष्टिनिका प्रमाण ऐसा ४ इनिकौं चौवीसका भाग देइ
अन्यत्र एक भागमात्र अर क्रोधकी प्रथम संग्रहविर्षे तेरह भागमात्र द्रव्य वा कृष्टिनिका प्रमाण हो है। बहुरि सर्व द्रव्यकौं चौइसका अर अपकर्षण भागहारका भाग दीएं एक आय द्रव्य वा व्यय द्रव्य ऐसा व १२ हो है। ताकौं अपना-अपना आय द्रव्य व्यय द्रव्यका प्रमाणकरि गुणें
२४ | ओ आय द्रव्य वा व्यय द्रव्यका प्रमाण हो है । बहुरि जहां आय द्रव्य वा व्यय द्रव्य नाही तहां शून्यकी संदृष्टि जाननी। बहुरि अपना-अपना द्रव्यका वा कृष्टिका प्रमाणकौं अपकर्षण भागहारका असंख्यातवां भाग ऐसा ओ ताका भाग दीएं घात द्रव्य वा घात कृष्टिनिका प्रमाण हो है ।
तिनकी संदृष्टि ऐसी
पृ० नं० ( ५९५ क ) में देखो इहां आय द्रव्य वा व्यय द्रव्यका जोड ऐसा व । १२ । २२६ । तहां चौइसकरि दोयसै
ओ २४
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