Book Title: Labdhisar
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Paramshrut Prabhavak Mandal

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Page 686
________________ अर्थसंदृष्टि अधिकार ६०७ ४ भया । बहुरि याका भाग सर्व कृष्टिनिका प्रमाण ऐसा ४ । २३ ताकौं दीएं ऐसा ४ । २३ इहां ख । १२ ख । २४ ख । २४ । ४ ख। १२ ऐसे का अपवर्तन कीएं ४ अर भागहारका भागहार ऐसा (१२) कौं राशि कोएं तहां ड्योढकरि ख अपवर्तन कीएं ड्योढ गुणहानि ऐसा (१२) ड्योढ गुणहानिमात्र भाज्य था ताका तौ एक गुणहानिमात्र ऐसा (८) भाज्य भया। अर चौईसका भागहार था सो सोलहका भागहार भया तव ऐसा ८ । २३ नवीन निपजी बंध कृष्टिनिके वीचि जे कृष्टि तिनका प्रमाण हो है बहुरि पूर्वोक्त १ बंधांतर कृष्टिनिका प्रमाण ऐसा ४ ताका भाग किंचिदून समय प्रबद्ध ऐसा (स-) ताकौं ख । १२ दीएं एक खंड होइ । ताकौं तिसहो करि गुणें बंधांतर कृष्टि संबंधी समान खंड हो है। बहुरि जो समय प्रबद्धका अनंतवां भाग जुदा राख्या था ताकौं सर्व पूर्व अपूर्व बंध कृष्टि प्रमाण गच्छका अर एक घाटि गच्छका आधाकरि न्यून दोगुणहानिका भाग दीएं विशेष होइ सो सर्व बंध कृष्टि प्रमाण गच्छका संकलन धनमात्र विशेष तिस जुदा राख्या भागवि ग्रहणकरि स्थापना । सो इहां एक विशेष ऐसा (वि) आदि एक विशेष उत्तर अर सर्व कृष्टिनिका प्रमाणविर्षे अनुभय उदय कृष्टिका प्रमाण घटाएं बंध कृष्टि हो है । सो तिस प्रमाणकौं किंचित् जानि न गिण्या। तव बंध कृष्टिमात्र गच्छ ऐसा ४ । २३ । इहां गच्छमैं एक घटाइ ताकौं दोयका भाग देइ उत्तर जो ख । १४ १० विशेष ताकरि गुणें ऐसा वि । ४ । २३ यामैं एक विशेष आदि मिलावनेकौं एक हीनकी जायगा एक ख । २४ । २ अधिक भया ताकौं न गिणि बहुरि गच्छकरि गुणें ऐसा वि । ४ । २३ । ४ । २३ इहां तेईस तेईस ख । २४ । २ । ख । २४ । कौं परस्पर गुणि पांचसै गुणतीस कीएं अर गुण्य गुणकार आगे पीछे लिखें ऐसा भया वि।४।४१५२९ खा२४ाखा२४/२॥ याका नाम बंध विशेष है । बहुरि जुदा स्थाप्याविर्षे याकौं घटाएं अवशेष समय प्रबद्धका अनंतवां भाग ऐसा स ताकौं सर्व बंधकृष्टिप्रमाणका भाग दीएं एक खंड होइ ताकौं तिसहीकरि गुण बंध मध्यम खंड द्रव्य होइ । ऐसें बंध द्रव्यका विधान कह्या ताकी संदृष्टि ऐसी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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