Book Title: Labdhisar
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Paramshrut Prabhavak Mandal

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Page 701
________________ ६२२ लब्धिसार-क्षपणासार प्रथम समयविर्षे कोने अपूर्व स्पर्धकनिके नीचें नवीन अपूर्व स्पर्धक करिए है । तिनका प्रमाण प्रथम समयसंबंधी स्पर्धकनिके असंख्यातवे भागमात्र है, सो ऐसा-९ । इहां संदृष्टि रचना ऐसी aaa व ९ ना ९ ना स्पर्धक ओa प्रथम समय अपूर्व स्पर्धक . ओ a व । ९ 21 ओ। 21a ओ aa द्वितीय समय अपूर्वस्पर्धक इहां सर्व स्पर्धकनिकी वर्गणाकी संदृष्टिविष समपट्टिका करि आगें विशेष घटता क्रम की संदृष्टि करी है। तहां कपरि पूर्व स्पर्धक नीचें प्रथम समयविषं कीने, अपूर्व स्पर्धक नीचे द्वितीय समयविर्षे कीने । अपूर्व स्पर्धककी रचना जाननी। ऐसे ही अपूर्व स्पर्धककरण अंत समयपर्यंत जानना। बहरि कृष्टिकरण कालका प्रथम समयविर्षे सर्व पूर्व अपूर्व स्पर्धकसंबंधी जीव प्रदेश ऐसे-व १२ । इनिकौं अपकर्षण भागहारका भाग दीएं एक भागमात्र ऐसा व । १२ । ग्रहि प्रथम समयविर्षे कीनी प्रथमादि कृष्टिनिविष अर अपूर्व स्पर्धककी प्रथमादि ओ वर्गणानिविर्षे द्रव्य दीजिए है । इहां कीनी कृष्टिनिका प्रमाण वर्गणाशलाकाके असंख्यातवे भागमात्र ऐसा ४ । इनकी रचना ऐसी इहां कृष्टिकी समपट्टिकारूप संदृष्टिकरि नीचे विशेष घटता क्रमको संदृष्टि करी है। बहुरि द्वितीय समयविष पूर्व द्रव्यतै असंख्यातगुणा द्रव्य ऐसा व । १२ ग्रहि ताकौं प्रथम समयवि कोनी कृष्टि ओ प्रमाणकौं असंख्यातगुणा अपकर्षण भागहारका भाग दीएं एक भागमात्र ऐसा ४ | तिनके नीचे aa Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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