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लब्धिसार-क्षपणासार
तीनघातिया
तीनधातिया
भायु
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/२०
a aaaa प२११ |aaaa | २११
२१
इहां क्रम हीनरूप निषेकनिकी संदृष्टि रचना जाननी। बहुरि सयोगी जिनके पूर्व स्पर्धक अपूर्व स्पर्धक सूक्ष्म कृष्टिरूप योग अनुक्रमतें हो है। तहां एक जीव प्रदेशविर्षे असंख्यात लोक प्रमाण अविभागप्रतिच्छेद हैं । याहीका नाम वर्ग है, ताकी संदृष्टि ऐसी [ व ] बहुरि समान अविभागप्रतिच्छेद लीएं वर्गनिका समूहरूप वर्गणा, ताविर्षे वर्गनिका प्रमाण असंख्यात जगत्प्रतर प्रमाण है। बहुरि वर्गणा समूहरूप एक स्पर्धक, तीहिविर्षे वर्गणा श्रेणिका असंख्यातवां भागमात्र है। याहीका नाम वर्गणाशलाका है। याकी संदृष्टि च्यारिका अंक है। बहरि स्पर्धक समहरूप गुणहानि, तीहिंविधैं स्पर्घकनिका प्रमाण असंख्यात है। याहीका नाम स्पर्धकशलाका है। ताकी सदृष्टि नवका अंक है (९)। बहुरि गुणहानि समूहरूप एक स्थान तीहिविर्षे गुणहानिका(प्रमाण) पल्यके असंख्यातवे भागमात्र है। याहीका नाम नाना गणहानि है। ताकी संदृष्टि ऐसो (ना)। ऐसें जघन्य स्थान हो है। इनके प्रमाणकी संदृष्टि ऐसी जाननी
अवि वर्ग वर्गणा स्पर्धक गुणहानि नानागुणहानि
= = aaaaa बहुरि स्थान स्थान प्रति सूच्यंगुलका असंख्यातवां भागप्रमाण मात्र जघन्य स्पर्धक बंध है। ऐसे उत्कृष्ट परिणाम योगपर्यंत क्रम है। ऐसे पूर्व स्पर्धकवि विधान है। तहां पूर्व स्पर्धकका जघन्य वर्गके अविभागप्रतिच्छेदनिकी संदृष्टि ऐसी (व)। याकौं स्पर्धकशलाका अर नाना गुणहानिकरि गुणे अंत स्वर्धकका प्रथम वर्गकी संदृष्टि होइ । तामैं अंक संदृष्टि अपेक्षा वर्गणा शलाकाका प्रमाण च्यारि तामैं एक घटाएं तीन होइ, सो अधिक कीएं पूर्व स्पर्धकका उत्कृष्ट वर्गके अविभागप्रतिच्छेदनिकी संदृष्टि ऐसी-व। ना ९ । ना। बहुरि इनके नीचें अपूर्व स्पर्धक हो है, तिनका
इस पृष्ठकी संदृष्टि में प्रथम संस्करणके अनुसार "तीन घातिया तीन घातिया" पाठ दो बार छपा है वहाँ “तीन घातिया तीन अघातिया" पाठ होना चाहिये।
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