Book Title: Labdhisar
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Paramshrut Prabhavak Mandal

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Page 716
________________ अथ ग्रंथप्रशस्तिवर्णन ।* श्रीमत लब्धिसार वा क्षपणासार सहित श्रुत गोम्मटसार ताकी सम्यग्ज्ञान चंद्रिका भाषामय टीका सुखकार । प्रारंभी अर पूरण भइ अब भए समस्त मंगलाचार सफल मनोरथ भयो हमारो पायो ज्ञानानंद अपार ॥ १॥ दोहा आप अर्थमय शब्दजुत ग्रंथ उदधि गंभीर । अवगाहैं ही जानिये याकी महिमा धीर ॥२॥ . षटूकारक या ग्रंथके निश्चय अर व्यवहार । जानहु जानत होत है जातें सत्य विचार ॥ ३ ॥ सवैया सिद्ध श्रुत शब्द सोई है स्वतंत्र करतार भया यहु ग्रंथ सोई कर्म पहिचानिए । ग्रंथरूप जुरनेकी शक्ति सो करण जैन शासनके अर्थि असौ संप्रदान जानिए । ग्रंथहीतै भयो ग्रंथ यहु अपादान जैन श्रुतविर्षे यहु अधिकरण प्रमानिए । स्वाश्रित स्वरूप षटूकारक विचारो असैं निश्चय करि आनको विधान न वखानिये ॥ ४ ॥ जिन गन इंद नेमि इंदु आदि करतार भयो ग्रंथ काज सोई कर्म शर्म थान है। याके होत भए जे सहाई हैं करण तेई भव्यनिके अर्थि किया असैं संप्रदान है। आन काज छूटनेतै भयो यहु काज सोई अपादान नाम से जानत सुजान हैं। भयो क्षेत्रविर्षे अधःकरण कहावे सोई असे व्यवहार षकारक विधान हैं ॥ ५॥ दोहा । ग्रंथ होंनके जे भए समाचार सुखकार । तिनकौं जानहु कहत हो जाने जाने सार ॥ ६ ॥ सवैया ॥३१॥ वर्धमान केवलीके देहरूप पुद्गल ते जीव नाहि मेरै तौऊ उपकार करै हैं। मेघवत् अक्षर रहित दिव्य ध्वनि करि धर्मामृत वरसाय भवताप हरै हैं । ताहीका निमित्त पाइ आन स्कंध पुद्गलके नानाविध भाषारूप होइ बिसतरे है। जाकों जैसौ इष्ट सो सुने हैं सो सत्य अर्थ सभा माहि असौ जिन महिमा अनुसरै है ॥ ७ ॥ गनधर गौतम जु च्यारि ज्ञानधारी आप महा रुचि धारि तिनकी तहां सुने है। तिनको निमित्त अर श्रुतज्ञान शक्ति सेती साचे नाना अर्थिनिकों नीकी भांति मुने है। राग अंश उदै होत भई उपकार बुद्धि तातें ग्रंथ गुथनेकौं भले वर्ण चुने हैं। अंग अग बाह्यरूप रचना बनाई ताको करिके अभ्यास भव्य सर्व कर्म धुने हैं ॥ ८ ॥ बुद्धि ऋद्धि धारी कोई संपूरण जानि ताहि कोई ताके अंग अंश जानि अर्थ पायो है । केई ताके अनुसार ग्रंथ जोरै हैं नवीन करिके संक्षेप सोई अर्थ तहां गायो है। गणधरके गूथे ग्रंथ तिनकों न पाठी अब असो कलिकाल दोष आपको दिखायो है। अनुसारी ग्रंथनितें शिव पंथ पाइ भव्य अबहू करि साधन स्वभाव भाव भायो है ॥ ९ ॥ * बादमैं पूरी प्रशस्ति मिल जानेसे यहाँ दे दी गई है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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