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अर्थसंदृष्टि अधिकार
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अयोगी कालका अंक संदृष्टिकरि च्यारि समय मानि बहत्तरि प्रकृतिनिकी तीन निषेकरूप अर बारह प्रकृतिनिकी च्यारि निषेक रूप रचना ऐसी जाननी ।
प्रकृति ७२
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प्रकृति १२
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अर निषेक घटते क्रम लीएं हैं अर अधोगलनरूप जुदे जुदे हैं, तातैं तिनकी जुदी जुदी रचना घटता क्रम लीएं करी है । ऐसें सर्व कर्मनिका क्षयकरि ताका अनंतर समयविषै पर द्रव्यसंबंधी रहित केवल आत्मा ऊर्ध्वगमन करि लोकका अग्रभागविषै जाइ विराजमान हो है । तहां अनंत कालपर्यंत तैसें ही रहे है, तातैं कृतकृत्य अवस्थाकों प्राप्त भए । तातें तिनकों सिद्ध कहिए । सो सिद्ध भगवान परम मंगलकारी होऊ । ऐसें श्रीलब्धिसार नामा शास्त्र अर इसहीविर्षं क्षपणासार शास्त्रका अर्थ गर्भित है । ताविषै अर्थनिकी संदृष्टि अर तिन संदृष्टिनिका स्वरूप निरूपण किया है। तहां जो चूक होइ सो विशेष ज्ञानो संवारि शुद्ध करियो, मोकौं अल्पज्ञ मानि क्षमा करियो ।
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श्लोक
गर्भितक्षपणासारं लब्धिसारश्रुतं महत् । तत्संदृष्टिसमाख्यातिः पूर्ण जातार्थ भासिका ॥ १ ॥ मंगलं महंतान सिद्धात्मा शुद्धमंगलं । मंगलं साधुसंघस्तद्धर्मो मंगलमुत्तमं ॥ २ ॥
इति क्षपणासार अर्थगर्भित लब्धिसारके अर्थनिकी संदृष्टिनिका वर्णन संपूर्ण भया, संपूर्ण होते हु ग्रंथ समाप्त भया, ग्रंथ समाप्त होतें प्रारंभ कीया कार्यकी सिद्धि होनेकर हम आपकों कृतकृत्य मानि इस कार्य करनेकी आकुलता रहित होइ सुखी भए । याके प्रसादत सर्व आकुलता दूरि होइ हमारें शीघ्र ही स्वात्मज सिद्धिजनित परमानंदकी प्राप्ति होउ ।
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