Book Title: Labdhisar
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Paramshrut Prabhavak Mandal

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Page 705
________________ लब्धिसार-क्षपणासार sri प्रथमादि समयनिकी रचनाकरि तहां कृष्टिनिकी रचना आगें करी है । तहां समपट्टिका विशेष घटता क्रमरूप संदृष्टि करी है अर अनुदय उदय अनुदय कृष्टिनिका प्रमाण लिख्या हैं । बहुरि सयोगीविषै अंतर्मुहूर्त काल अवशेष रहें वेदनीय नाम गोत्रका अंत कांड की प्रथम फालिका पतन हो है । तहां ताके द्रव्यकौं ग्रहि स्थितिकांडकघात कीएं पीछे अवशेष जो स्थिति रहैगी ताविषें असंख्यातगुणा क्रमकरि अर ताके ऊपरि पुरातन गुणश्रेणि आयामका अंत पर्यंत चय घटता क्रमकरिअर ताके ऊपर अतिस्थापनावली छोडि उपरितन स्थितिविषै चय घटता क्रमकरि द्रव्य दीजिए है । ऐसें इहां तीन पर्व जानने । ऐसें ही ताकी द्वितीयादि चरम फालि पतन समयपर्यंत विधान जानना । बहुरि अंत फालि पतन समयविषै अवशेष स्थितिका द्विचरम समय पर्यंत एक पर्व अर अंत समयरूप द्वितीय पर्व ऐसें दोय पर्वनिविर्ष द्रव्य दीजिए है । इहां पिच्यासी प्रकृतिनिका सत्त्वविषै बहत्तर प्रकृति तो अयोगीका द्विचरम समयविषै अर तेरह प्रकृति ताका अंत समयविषै खिपैंगी, तातें जुदी जुदी रचना करिए है । अर तेरह प्रकृतिनिविषै मनुष्यायुका स्थितिकांडकघात नाहीं । तातें इहां बारह प्रकृतिनिका ग्रहण कीया है । सो इहां जैसे क्षीणकषायविषै ज्ञानावरणादिafter अंत कisaविषै विधान वा सम्यग्दृष्टिका स्वरूप कहया था तैसे इहां जानना । बहुरि आयु अंतर्मुहूर्तमान स्थिति रही ताकी घटता क्रमलीएं निषेकनिकी रचना जाननी । ऐसें इनकी संदृष्टि ऐसी हो है insicant प्रयमादिफालि अतिस्थापनावली ५२६ तृतीय / पर्व द्वितीय पर्व प्रथम पर्व ४ Jain Education International iasisaat अंतफालि VALGE प्रकृति ७२ अन्त० समय प्रथमपर्व प्रकृति १२ अत०रुमय प्रथमपर्व बहुत अनंतर अयोगो गुणस्थान हो है । तहां पांच लघु अक्षर उच्चारण कालमात्र स्थिति है । ताक प्रथमादि समयनिविषै तिन पर्वनिका एक एक निषेककौं गलावे है । तहां बहुत्तरि प्रकृतिनिका द्विचरम समयविषै तेरह प्रकृतिनिका अंत समयविषै अंत निषेककौं गलावें है । सो इहां For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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