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अर्थसंदृष्टि अधिकार
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प्रथम कृष्टिका द्रव्य होइ । इस गुणकारविषै क्रमतें एक एक घटाइ एक घाटि सूक्ष्मकृष्टिमात्र घटैं अंत कृष्टिका द्रव्य हो है । इनि सबनिकी रचना ऐसी
सूक्ष्मकृष्टि
लोभकी तृतीयसंग्रह
लोमकी द्वितीयसंग्रह
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ख २४
१७
।
व १२५५३ १६००० व १२५५३ १६-४
१ २४ ओ४१६-४ २४ ओ४१६ ४ ख
स ख२ ख ख २
इहां अनुभागकी रचना है । तातै आडो सहनानी करी है। तहां नीचें सूक्ष्मकृष्टि लिखी है। ताकी समपट्टिका अर विशेष घटता क्रमको संदृष्टिकरि नीचें आदि अंत कृष्टिनिके द्रव्यका प्रमाण लिख्या है। बहुरि ताके ऊपरि लोभकी तृतीय कृष्टि अर ताके ऊपरि द्वितीय कृष्टि लिखी है । तहां समपट्टिका पूर्व विशेष अधस्तन कृष्टि उभय द्रव्य विशेषकी संदृष्टि पूर्वोक्त प्रकार करीहै । बहुरि तिन कृष्टिनिके वोचि जे नवीन कृष्टि भई तिनको संदृष्टि वीचिमें लीककरी है । तहां संक्रमण द्रव्यकरि निपजीकी तौ सूधी लोक अर बंध द्रव्यकरि निपजी कृष्टिनिकी वक्र कहिए वाकी लीक करी है। बहुरि द्वितीय कृष्टिकी जिनि पुरातन नूतन बंध कुष्टिनिविर्षे बंधान्तर कृष्टि विशेष बंध मध्यम खंडरूप बंध द्रव्य दीजिये है। तहां उभय द्रव्य विशेषवि इतना द्रव्य घटता दीया है ताकी संदृष्टि उभय द्रव्यकी रचनाविर्षे ऐसी --- करी है । बहुरि सूक्ष्म कृष्टिकारक कालका
द्वितीयसमयविर्षे प्रथमसमयवि जेती कृष्टि कीनी तिनके असंख्यातवे भागमात्र नवीन कृष्टिकरिए है तिनकी संदृष्टि ४ तिनविर्षे पूर्व कृषिनिके नीचे जे कृष्टि करिए है तिनके असंख्यातवे भाग
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मात्र ऐसी ४ अर पूर्व कृष्टिनिके वीचि करिए है ते बहुभागमात्र ऐसी ४ | 3 इहां गुणकारका एक ख aa
ख aa
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