Book Title: Labdhisar
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Paramshrut Prabhavak Mandal

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Page 696
________________ दृष्टि अधिकार भाग देइ एक भागमात्र • ताक सूक्ष्मसांपरायका द्विचरम समय पर्यंत प्रथम पर्वविषै असंख्यातगुणा क्रमकरि देना । तहां ताक़ अंक संदृष्टि करि पिच्यासीका भाग देइ एक च्यारि सोलह चौंसठ हैं । बहुरि बहुभाग सूक्ष्मसांपरायका अंत समय संबंधी निषेकविषै दीजिए है । यह दूसरा पर्व है । इनकी संदृष्टि रचना ऐसी द्वितीयपर्व प्रथमपर्व Jain Education International स १२ - मृ a ७ मृ a स ३१२- ६४ ७८५ सa१२ १६ ७८ स १२-४ ७३८५ स १२-१ ७८५ Asia प्रथम पर्वकी अधिक क्रमरूप संदृष्टि करी है । ताके आगे प्रथमादि निषेकका द्रव्य लिख्या है । ताके ऊपरि एक निषेक बडा लिख्या है । ताके आगें तहांही दिया द्रव्य लिख्या है ऐसे कृष्टि वेदनाधिकारका विधानविषै संदृष्टि जाननी । बहुरि क्षीणकषायविषै छह कर्मनिविषै विवक्षित एक कर्मका सत्त्व द्रव्य ऐसा स । ३ । १२ ताकों अपकर्षण भागहारका भाग देइ एक ७ भागमात्र द्रव्य ग्रहि ताकों पल्यका असंख्यातवां भागका भाग देइ तहां एक भाग गुणश्रेणि आयाम वि गुणकारक्रम बहुभाग उपरितन स्थितिविषै अतिस्थापनावली छोडि विशेष घटता क्रमकरि देना तिनकी संदृष्टि ऐसी स १२- प ७ भोप 3 a १२ १० १ स ७ ओप a ६१७ बहुरि निद्रादिक चौदह घातियानिका अंत कांडकविषै प्रथमादि फालिनिका वा अंत फालिका द्रव्य देनेका विधान जैसें सूक्ष्मसांपरायविष मोहका का तैसें ही जानना । तिनकी रचना पूर्वोक्त प्रकार ऐसी ७८ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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