Book Title: Labdhisar
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Paramshrut Prabhavak Mandal

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Page 684
________________ अर्थदृष्टि अधिकार ६०५ द्रव्य तहां संकलन धनमात्र तृतीय संग्रहका आय द्रव्यतें ग्रहि स्थापना, इसका नाम उभय द्रव्यविशेष । इहां 'पदमेगेण विहीणं' इत्यादि सूत्रकरि द्वितीय संग्रहविषै गच्छ ऐसा ४ । २३ तामैं एक ख । २४ १ - घटाइ ताक दोयका भाग देड ताकरि उत्तर जो विशेष ताकौं गुणें ऐसा वि । ४ । २३ बहुरि ख । २४ । २ आदि एक विशेष मिलावनेकौं एक हीनकी जायगा एक अधिककरि ताकौं गच्छकरि गुणें ऐसा ܩܐ वि ४ २३ ४ २३ बहुरि इहां ते ईसकरि तेइसकौं गुणि पांचसै गुणतीसका गुणकार कीएं अर गुण्य ख २४२ ख २४ १ गुणकारनिकों आगे पीछें लिखें संकलन धन ऐसा वि । विषं गच्छ ऐसा-४ ܩܐ । ४ । ५२९ हो है । बहुरि तृतीय संग्रह - ख । २४ । ख । २४ । २ मैं एक घटाइ दोयका भाग देइ ताकरि उत्तर जो विशेष ताक गुण ख । २४ ऐसा वि । ४ । ४ यामैं आदि ऐसा वि । ४ । २३ मिलावना सो याकौं दोयकरि समच्छेद कीएं यह ख । २४ । २ ख । २४ । ऐसा - वि । ४ । ४६ अर याकै वाकेँ अन्य समान देखि याका छयालीसका गुणकारविषै वाका एक ख । २४ । २ १० ख । २४ गुणकार मिलाएं ऐसा वि । ४ । ४७ बहुरि याक गच्छ ऐसा ४ ख । २४ । २ आगे पीछें लिखें संकलन धन ऐसा वि । ४ । ४ । ४७ ख । २४ । ख । २४ । २ इहां घात कृष्टिनिका हीनपना वा संक्रमण कृष्टिनिका अधिकपना वा एकका अधिक हीनपनाकौं न गिणि संदृष्टि जानना । बहुरि इस तीन प्रकार द्रव्यकरि हीन तृतीय संग्रहका आय द्रव्य ऐसा व । Jain Education International ܩܐ करि गुणैगुण्य गुणकारनिकौं २४ | आ तहां किचिदूनको न गिणि ताका मध्यम खंड सहित तृतीय संग्रहकी जघन्य कृष्टि ऐसी व । १२ ४ ख करी है ऐसा १२ । २३= ताका भाग देइ अपकर्षण कीएं वा भागहारका भागहारकों राशि कीएं संक्रमण द्रव्यकरि वीचि afe भई नई कृष्टिनिका प्रमाण ऐसा ४ । २३ बहुरि इसका भाग अपनी सर्व कृष्टिनिका ख । २४ । ओ प्रमाणक दोएं संक्रमणांतर कृष्टिनिके वीचि जे कृष्टि पाइए तिनका प्रमाण ऐसा ४ ख । २४ । ४ । २३ ख । २४ । ओ sri अपवर्तन कीएं वा भागहारका भागहारकों राशि कोएं ऐसा ओ बहुरि पूर्वोक्त संक्रमणांतर २३ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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