Book Title: Labdhisar
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Paramshrut Prabhavak Mandal

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Page 682
________________ अर्थसंदृष्टि अधिकार ६०३ ऐसा व । १२ । १ इनिकौं मिलाएं सर्व सूक्ष्म कृष्टिरूप परिणया द्रव्य ऐसा व । १२ । ५५३ इतने २४ । ओ २४ । ओ द्रव्यकरि सर्व सूक्ष्मकृष्टि करण कालका प्रथम समय विर्षे बादरकृष्टिनिके नीचे सूक्ष्मकृष्टि करिए है । तिनिका प्रमाण कहिए है__ क्रोधकी प्रथम संग्रह कृष्टि ऐसी ४ । १३ बहुरि पूर्व पूर्व संग्रह उत्तर उत्तर संग्रहरूप होइ ख । २४ परिनमैं है तातै पूर्व प्रमाणकौं विवक्षित संग्रहकृष्टिका प्रमाणविर्षे मिलाएं अपना अपना वेदक कालविष कृष्टिनिका प्रमाण ऐसा क्रोध मान नाम संग्रह प्र द्वि | कृष्टिप्रमाण ४१४४१५४१६ । ४१७ ४१८ ख २४ । ख २४ ख २४ । ख २४ ख २४ । ख २४ माया लोभ नाम संग्रह द्वि सूक्ष्मकृष्टि कष्टिप्रमाण ४ १९, ४२० | ४ २१ | ४ २२ ख २४ ख २४ ख २४ । ख २४ ४ २३ | ४ २४ ख २४ । ख २४ ख हो है । तहां सूक्ष्म कृष्टिनिका प्रमाण ऐसा ४ । २४ अपवर्तन कीएं ऐसा ४ हो है । बहरि इहां लोभ ख २४ का द्वितिय संग्रहविर्षे आय द्रव्यका तौ अभाव है। तृतीय संग्रहरूप भया व्यय द्रव्य ऐसा हो है व । १२ । २३ सोई तृतीय संग्रहका आय द्रव्य है । इसहीका नाम संक्रमण द्रव्य है । बहरि लोभकी २४ । ओ द्वितीय ततीय संग्रहविर्षे अपनी अपनी कृष्टि प्रमाणकों अपकर्षण भागहारका असंख्यातवां भागका भाग दोए अपना अपना घात कृष्टिका प्रमाण हो है । ताकरि अपनी अपनी अंत कष्टिका द्रव्यको गुणि किछु साधिक कीएं अपना अपना घात द्रव्य हो है। तहां घात द्रव्यकौं यथासंभव दीएं स्वस्थान परस्थान गोपुच्छरूप होइ कृष्टि हो है। तिनविर्षे संक्रमण द्रव्य वा घात द्रव्यका विभाग कहिए है एक विशेष आदि अर एक विशेष उत्तर अर एक घाटि घात कीएं पीठें रही अपनी कष्टिनिका प्रमाणमात्र गच्छ स्था संकलन धनमात्र द्रव्य तृतीय संग्रहविर्षे आय द्रव्यतै ग्रहि स्थापना अर तृतीय संग्रह कृष्टिमात्र विशेष आदि अर एक विशेष उत्तर अर घात कीएं पीछे रही अपनी कृष्टिमात्र गच्छ स्थापै संकलन धनमात्र द्वितीय संग्रहविर्षे घात द्रव्यतै ग्रहि स्थापने। इसका Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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