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अर्थसंदृष्टि अधिकार
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अर क्रोधकी प्रथम संग्रहविषै बंध द्रव्य ही करि नवीन कृष्टि भई तिनकी संदृष्टि जाननी । बहुरि इन सर्व पूर्वं अपूर्वं कृष्टिनिविषे मध्यम खंड द्रव्य दीया
ऐसी
ताकी समानरूप लीककी संदृष्टि जाननी । बहुरि इन सर्वं पूर्वं अपूर्व कृष्टिनिविषै क्रम हीन रूप उभय द्रव्य विशेष द्रव्य दीया ताकी क्रम हीन रूप लीक संदृष्टि जाननी । बहुरि बंध होने योग्य पूर्वं कृष्टिनिका उभय द्रव्य विशेष द्रव्यविषै वा बंध द्रव्यकरि निपजी नवीन कृष्टिका बंधांतर विशेष द्रव्यविषै घटत्ता द्रव्य दीया तहां बंध विशेष द्रव्य दीया अर बंध द्रव्यका मध्यम खंड द्रव्य दीया ताकी उभय द्रव्य विशेष द्रव्यकी संदृष्टि असी जाननी । असें इहां रचना
जाननी | बहुरि क्रोधकी प्रथम संग्रहका द्रव्य असा - व १२ १३ । सो द्वितीय संग्रह रूप भया । अर द्वितीय संग्रहका द्रव्य पूर्वे औसा व । १२ । १ था ही सो मिलि द्वितीय संग्रहका द्रव्य असा व । १२
२४
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। १४ । भया । ऐसें ही अन्य संग्रहविषै लोभकी द्वितीय संग्रहपर्यंत पूर्वं पूर्व संग्रहका द्रव्य अपने द्रव्यविषै मिलने अपना अपना द्रव्य हो है । सो जानना ताकी संदृिष्ट रचना असी
मान
क्रोध
नाम संग्रह | प्र 1 द्वि 1 तृ द्रव्य व १२ १३ व १२ १४
२४
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नाम I
माया
संग्रह प्र T द्वि द्रव्य व १२ १९ व १२२० २४ २४
प्र
तृ
व १२ १५ व १२ १६ व १२ १७ व १२१८ २४
२४
२४
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लोभ तृ | Я द्वि I । तृ व १२ २१ व १२२२ व १२ २३ व १२२४ २४ २४ २४ २४
तहां अपने अपने द्रव्यका अपकर्षणकरि प्रथम स्थितिविषै गुणकार क्रमकरि द्वितिय स्थितिविष विशेष हीन क्रमकरि देनेका विधान पूर्वर्वत् जानना । बहुरि आयुद्रव्य आदि यथासंभव जानि तिनकी संदृष्टि पूर्ववत् जाननी । बहुरि तहां संक्रमण द्रव्य बंध द्रव्यका विधान यथासंभव जानि तिनकी संदृष्टि पूर्ववत् जाननी । विशेष होइ सो विशेष जानि लेना । बहुरि क्रोध मान माया लोभ वेदक क्रमते च्यारि तीन दोय एक कषायनिका बंध है । तहां जिस कषायकी जिस संग्रहकों वेदे
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