Book Title: Labdhisar
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Paramshrut Prabhavak Mandal

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Page 681
________________ लब्धिसार-क्षपणासार है तिस कषायकी तौ तिसही संग्रहका बंध है। अन्य कषायकी प्रथम संग्रहका बंध है। तिस बंधांतर कृष्टि शलाकावि क्रोधवेदकके कृष्टिप्रमाणकौं छह गुणहानिका भागहार कह्या था। मान माया लोभवेदककै क्रमतें साढा च्यारि, तीन, ड्योढ गुणहानिका भागहार जानना । तिनकी संदृष्टि ऐसी नाम । लोभ । माया मान । क्रोध क्रोधवेदक ख।८।६ ख।८। ६ ख। ८ । ६ ख । ८।६ मानवेदक ख ।८। ८1९ ख।८।९ मानवेदक ख ।। ९ ख । ८१९ ख। ८॥ ९ मायावेदक । खा४।३ ख । ४।३ । लोभवेदक ख ।८। बहुरि बंधांतर कृष्टिनिके वीचि जे अन्तर कृष्टि तिनिका प्रमाण क्रोधका प्रथमसंग्रहका वेदकवि अन्य कषायनिकी गणहानिका चौथा भागमात्र क्रोधका तातै तेरह गणा कहा था। बहुरि ताकरि द्वितीय तृतीय कृष्टि वेदकविर्षे अन्य कषायनिका पूर्ववत् अर क्रोधका चौदह पंद्रह गुणा जानना । बहुरि मानकी प्रथमादि संग्रह वेदककै अन्यकषायनिका गुणहानिकै तीन सोलहवां भागमात्र मानका तातै सोलह सतरह अठारह गुणा क्रमतें जानना। बहुरि मायाकी प्रथमादि संग्रह वेदककै लोभका गुणहानिका दोय सोलहवां भागमात्र, मायाका तातें उगणीस वीस इकईस गुणा क्रमतें जानना । लोभको प्रथमादि संग्रह वेदकके लोभका गुणहानिका सोलहवां भाग वाईस तेईस चौवीस गुणा जानना । तिनकी संदृष्टि ऐसीनाम लोभ माया मान क्रोध क्रोधवेदक ८। १३ । १४ । १५ ४ ४ ८। ३ ८।३८ ।३ । १६ १७। १८ मानवेदक १६ १६ १६ । ८।२ । ८। १८ । २० । २१ । मायावेदक ८। २२ । २३ । २४ | लोभवेदक १६ बहुरि द्वितिय संग्रहका द्रध्य ऐसा व । १२ । २३ याकौं अरकर्षण भागहार का भाग देइ पचीस २४ भागमात्र संक्रमण द्रव्य ऐसा व । १२ । ५७५ तिसविर्षे एक भागमात्र तृतिय संग्रह रूप परिणया २४ । ओ द्रव्य ऐसा- व । १२ । २३ अर चौईस भागमात्र सूक्ष्मकृष्टिरूप परिणया द्रव्य ऐसा व । १२ । ५५२ २४ । ओ २४। ओ बहुरि तृतीय संग्रहका द्रव्यकौं अपकर्पण भागहारका भाग दीए एक भाग सूक्ष्मकृष्टिरूप परिणया Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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