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लब्धिसार-क्षपणासार
बंध विशेष द्रव्य हो है । सो याक सर्व बंध कृष्टिनिविषै जहां उभय द्रव्य विशेषविषै घटता द्रव्य देना ह्या तहां या देइ पूर्ण करना । बहुरि तिस एक भागविषै याकों घटाएं जो अवशेष रह्या ताक अपनी अपनी सर्वकृष्टि प्रमाणका भाग दोए एक खंड होइ ताकौं तिसहीकरि गुण सर्व मध्यम खंड द्रव्य होइ । ऐसें बंध द्रव्यविषै च्यारि प्रकार कहे । इनिकी संदृष्टिनिका मोकौं नीकं ज्ञान न भया तातैं इहां नाही लिखी है । बहुरि इनि द्रव्यनिके देनेका विधान पूर्वे व्याख्यानविष हि आए हैं । बहुरि इहां अनंती जायगा पहले बहुत पीछें घाटि पीछे वाधि वाधि द्रव्य दीए हैं। तातें अनंत उष्ट्रकूट रचना हो है । बहुरि बारह संग्रहनिविषै नीचें नवीन भई कृष्टि अर पूर्व अर अपूर्व कृष्टिनिके वीचि वीचि संक्रमण द्रव्यकरि निपजों नवीन कृष्टि अर च्यारि संग्रह निविष बंध कृष्टि तिनकी रचना औसी जाननी । -
पृष्ठ नं० ६०० ( क ) में देखो । हां अनुभाग की रचना युगवत् कालविषै संभव है तातें आडी रचना करी है । तहां नीचें लोभकी तृतीय संग्रह कृष्टि तिसविषै नीचें नवीन कृष्टिनिकी रचना असी तिनके उपरि
पूर्व कृष्टिनिकी रचना असी
याविषै समपट्टिकाकी समान लीक अर विशेष घटता क्रमकी क्रम हीन रूप लोक अर तिनविर्षे अधस्तन शीर्ष विशेषका द्रव्य दीया ताका क्रम अधिकरूप लीक की संदृष्टि कीएं असी ऐस की सर्व पूर्व अपूर्व कृष्टिनिकी समपट्टिका
भई । असें ही लोभी द्वितीयादिविष संदृष्टि जाननी । तहां क्रोधकी तृतीय संग्रहविषे नीच नवीन कृष्टि नाही भई तातैं तिनकी रचना नाही करी है । पूर्वं कृष्टिनिहीकी रचना करी है । बहु इनि पूर्व कृष्टिनिके वीचि संक्रमण द्रव्यकरि नवीन कृष्टि भई तिनकी सूधी ऊभी लोकरूप दृष्टि अर बंध द्रव्यकरि नवीन कृष्टि भई तिनकी वांकी कभी लोकरूप संदृष्टि जाननी । तहां लोभादिक च्यारयो कषायनिकी तृतीय द्वितीय संग्रहविषै तो संक्रमण द्रव्यहीकरि नवीन कृष्टि भई तिनकी संदृष्टि ऐसी अर लोभ माया मानकी प्रथम संग्रहविषै संक्रमण द्रव्य
करिअर बंध द्रव्यकरि नवीन कृष्टि भई तिनको संदृष्टि असी
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