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लब्धिसार-क्षपणासार हारका भागहार ऐसा ओ ताकौं राशि कीएं लोभकी तृतीय संग्रहविर्षे नवीन कृष्टिनिके वीचि
जे पूर्व कृष्टि हैं तिनका प्रमाण हो है। ऐसे ही अन्य विर्षे जानना तिनकी संदृष्टि ऐसीओ ओ ओ ओ ओ ओ ओ ओ ओ ओ ओ २- १- ३- २- १- ३- २- २- १५- १४- १८२बहुरि इहां जो पूर्व कृष्टिनिके वीचि नवीन भई संक्रमणांतर कृष्टि तिनिका प्रमाण कह्या ताका भाग अपने अपने किंचिदून आय द्रव्यकों दीए एक नवीन कृष्टिका द्रव्य होइ । बहुरि याकौं तिसही संक्रमणांतर कृष्टिप्रमाण करि गुणि अपवर्तन कीए अपना अपना किंचिदून आय द्रव्यमात्र संक्रमणांतर कृष्टिसंबंधी समान खंड द्रव्य हो है। आय द्रव्यकी संदृष्टि पूर्वै कही है। ताके आगैं किंचिदूनकी संदृष्टि करनी । क्रोधकी प्रथम संग्रहकृष्टिविर्षे यहु विधान नाहों तहां शून्य जाननी । औ0 ग्यारह संग्रह कृष्टिनिका संक्रमण द्रव्यविष क्रोधको प्रथम संग्रहका घात द्रव्यविर्षे विभाग हो है तिनकी संदृष्टि जैसी
पृ० नं० ५९८ (क) में देखो ऐौंही संक्रमण द्रव्यका विधानकी संदृष्टि कहि अब बंध द्रव्यका विधानकी संदृष्टि कहिए है
मोहनीयका समयप्रबद्धकी संदृष्टि ऐसी (स)। ताकौं च्यारिका भाग दीए एक कषायका द्रव्य होइ । तहां मानका स्तोक, तातै क्रोध माया लोभका क्रम अधिक है। तिनकी संदृष्टि रचना ऐसी—मान क्रोध माया लोभ । बहुरि मध्यम खंड सहित लोभकी तृतीय संग्रहकी जघन्य
स स स स ।
कृष्टिका द्रव्य ड्योढ गुणहानि गुणित समयप्रबद्धकौं सर्व कृष्टिका भाग देइ साधिक कीएं ऐसी
स १२ सो इतने द्रव्यकी एक कृष्टिरूप एक शलाका होइ तो पूर्वोक्त मानका द्रव्यको केती होइ ?
इहां समयप्रबद्धका अपवर्तन कीएं
ऐसें त्रैराशिक कीए लब्धिराशि मानवि ऐसी स
४ स १२
अर भागहारका भाग ऐसा ४ ताकौं भाज्य कीएं अर भागहारविर्षे च्यारि अर ड्योढ गुणहानि ऐसा
(१२) इनिकों परस्परगुण छह गुणहानि भई। तहां गुणहानिकी संदृष्टि आठका अंक करि ताके आगें छहका गुणकार कीएं संदृष्टि हो है। बहुरि क्रोधादिक विर्षे ऐसी ही अधिक क्रमरूप संदृष्टि हो है । ऐसें बंधांतर कृष्टिनिका प्रमाणको संदृष्टि ऐसी
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