Book Title: Labdhisar
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Paramshrut Prabhavak Mandal

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Page 675
________________ क्षपणासार-लब्धिसार छव्वीसका अपवर्तन कीएं साधिक नवका गुणकार हो है ऐसा जानना। बहुरि क्रोधकी प्रथम संग्रह कृष्टिनिविर्षे आय द्रव्यका अभाव है तात याका तो घात द्रव्य है अर अन्य संग्रहका आय द्रव्यतै द्रव्य ग्रहि अघस्तनशीर्षविशेष आदि द्रव्य स्थापने। तहां कृष्टिकौं प्राप्त भया सर्व द्रव्य ऐसा ( व । १२ ) ताकौं सर्व कृष्टिमात्र गच्छ ऐसा ४ ताका अर एक धाटि गच्छका आधाकरि न्यून दो गुणहानिका भाग दोएं पूर्व विशेष ऐसा व १२ याकी लघु ४ । १६-४ ख । ख २ संदृष्टि ऐसी ( वि ) बहुरि इहां गच्छका प्रमाण सर्व कृष्टिमात्र स्थापि जैसे कुष्टिकारकका द्वितीय समयवि. विधान कह्या है तैसें अधस्तनशीर्षविशेषकी संदृष्टि हो है । विशेष इतना तहां ताकौं प्रथम संग्रह कृष्टि कही थी ताकौं इहां तृतीय संग्रह कहनी। तृतीय कही थी ताकौं प्रथम कहनी। बहुरि लोभकी तृतीय संग्रहकी जघन्य कृष्टि ऐसी । व । १२ इहां सर्व द्रव्यकौं सर्व कृष्टिके प्रमाणका भाग दीएं मध्यम धन होइ। तावि. विशेषका अधिकपना कीएं जघन्य कृष्टि भई है। बहुरि याकौं दोयवार असंख्यातकरि गुणित अपकर्षण भागहारका भाग दीएं एक मध्यम खंड ऐसा व । १२ याकौं अपनी अपनी संग्रहके कृष्टि ४ । ओ। aa का प्रमाणकरि गुणें अपना अपना मध्यम खंड द्रव्य हो है । बहुरि लोभकी तृतीय संग्रहकी जघन्य कृष्टिविर्षे एक मध्यम खंड मिलावनेकौं साधिककी संग्रह कृष्टि कीएं ऐसा व । १२ ar बहुरि अपनी अपनी संग्रहके नोचे संक्रमण द्रव्यकरि करी जे नवीन कृष्टि तिनिका प्रमाण अपनी पूर्वं कृष्टिनिकौं असंख्यात गुणां अपकर्षण भागहारका भाग दीएं ऐसा ४ भागहारका गुण्य ___ ख । ओ। गुणकारनिकौं आगें पीछे लिखें ऐसा ४ ताकरि तिस लोभको जघन्य कृष्टि समान ख I aख द्रव्यकौं गुणें अपना अपना संग्रहके नीचें संक्रमण द्रव्यकरि भई नवीन कृष्टि संबंधी समान द्रव्य हो हैं । तहां क्रोधकी प्रथम कृष्टिविर्षे यहु द्रव्य नाहीं संभव है। तहां शून्य जाननी। बहुरि पूर्व Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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