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अर्थसंदृष्टि अधिकार
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उत्तर द्रव्यकों पुरातन नूतन कृष्टिमात्र गच्छका अर एक घाटि गच्छका आधाकरि न्यून दोगुणहानिका भाग दीएं एक उभय द्रव्य विशेष होइ ताकी लघु संदृष्टि ऐसी (वि) स्थापि जैसे कृष्टिकारकका द्वितीय समयविषै विधान कह्या था तैसें इहां उभय द्रव्यविशेष कीएं संदृष्टि हो है । विशेष इहां मध्यम खंडवत् जानना । बहुरि एक मध्यम खंड सहित लोभकी तृतीय संग्रहकी
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जघन्य कृष्टिका द्रव्य ऐसा व १२ ताकी एक शलाका होइ तो लोभकी तृतीय संग्रहका आय द्रव्य
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विर्षं पूर्वोक्त च्यारि द्रव्य घटावनेकों आगे किंचिदूनकी संदृष्टि कीएं ऐसा व । १२ । २ – सो २४ ओ इतने द्रव्यकी केती शलाका होइ ? ऐसें त्रैराशिक कीएं लब्धिराशि ऐसा व । १२ । २ -- इहां २४ । ओ । व । १२
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किंचित् हीन अधिक न गिणि ऐसा व । १२ का अपवर्तन कीएं अर भागहारका भागहार ऐसा ४ ताकों भाज्य कीएं अर राशिका गुणकार ऐसा २ - ताक भागहारका भागहार कीएं ऐसा ४ | ओ ख । २४ । २–
है ।
भया सो यहु लोभकी तृतीय संग्रहकी संक्रमणांतर कृष्टिनिका प्रमाण हो तिनके वीचि वीचि इतनी नवीन कृष्टि संक्रमण द्रव्यकरि भई हैं । ऐसे ही विषै विधान कीएं अन्य संदृष्टि तौ समान हो हैं । अर भागहारका भागहार आदि आय द्रव्यका प्रमाण किंचिदून हो है । अर क्रोधको तृतीय संग्रहविषै आय द्रव्यका अभाव हैं। ता तहां यह विधान संभवे है । तहां शून्य जाननी । तिनकी संदृष्टि ऐसी
पूर्वे कृष्टि थीं अवशेष दश संग्रहअपना अपना एक
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ख २४ओ ख २४ओ ख २४ओ ख२४ओ ख २४ओ ख२४ओ ख २४ओ ख२४ओ ख२४ओ ख २४ओ ख२४ओ ३- २- १- ३- २- १- | १५- १४- १८२अपनी संग्रह कृष्टिनिके प्रमाणको भाग देइ ऐसा ४ का अपवर्तन कीएं अर भाग
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ख । २४
हारका भागहारकौं राशि कीएं संक्रमणांतर कृष्टिनिके वीचि जे अन्तर कृष्टि हैं तिनका प्रमाण हो है । तहां लोभका प्रथम संग्रहविषै पूर्वं कृष्टि ऐसी ४ या नवीन करी कृष्टि
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ख । २४
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ऐसी ४ ताका भाग दीएं ऐसा ४ ख । २४ । ओ २
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। इहां ऐसेका
ख । २४ । ४
ख । २४ । ओ २
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४ अपवर्तन कीएं अर भाग
ख । २४
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