Book Title: Labdhisar
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Paramshrut Prabhavak Mandal

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Page 683
________________ ६०४ लब्धिसार-क्षपणासार नाम बादर कृष्टिसंबंधी अधस्तन शीर्षविशेष द्रव्य है । इहां 'पदमेगेण विहीणं' इत्यादि सूत्रकरि संकलन धन कहिए है__ तृतीय संग्रहविर्षे गच्छ ऐसा ४ इहां घात कृष्टिनिका वा एक घाटिका किंचिदूनपनाकौं नाही ख । २४ गिण्या है। यामैं एक घटाइ दोयका भाग दीएं ताकरि ऐसा ४ याकरि उत्तर जो विशेष ख । २४ । २ ताकौं गुणें ऐसा वि ४ यामैं आदि एक विशेष मिलावनेकौं एक घाटि था तहां एक अधिककरि ख। २४ । २ ताकौं गच्छ ऐसा ४ करि गुणि तहां गुण्य गुणकारनिकौं आगें पीछे लिखें संकलन धन ऐसा १- ख । २४ वि । ४ । ४ हो है । बहुरि द्वितीय संग्रहविषै गच्छ ऐसा-४ । २३ यामैं एक घटाइ दोयका ख । २४ । ख २४ । २ ख। २४ भाग देइ ताकरि उत्तर जो विशेष ताकौं गुणें ऐसा-वि। ४ । २३ यामैं आदि ऐसा वि ४ ख। २४ । २ ख २४ मिलावना सो याकौं दोयकरि समच्छेद कीएं ऐसा-वि । ४ । २ अर याकै वाकै अन्य समान ख । २४ । २१. देखि तेईसका गुणकारविर्षे दोयका गुणकार मिलाएं ऐसा वि । ४ । २५ याकौं गच्छ ऐसा ख । २४ । २ ४ । २३ करि गुणें ऐसा वि। ४ । २५ । ४२३ इहां पचीस अर तेइसकौं परस्पर गुण पांचसै पिचहत्तरिका ख । २४ ख । २४ । २ । ख २४ । गुणकार कीएं अर गुण्य गुणकार आगें पीछे लिखें संकलन धन ऐसा । वि । ४ । ४ । ५७५ हो है। ख । २४ । ख २४२ इहां एक अधिक होनकौं न गिणि संदृष्टि करी है ऐसा जानना। बहुरि तृतीय संग्रहकी जघन्य कृष्टि ऐसी व १२ याकौं असंख्यातगुणां अपकर्षण भागहार ऐसा ( ओ a) ताका भाग देइ ताकौं तृतीय संग्रहविर्षे कृष्टिप्रमाण ऐसा ४ अर द्वितीय संग्रहविर्षे कृष्टिप्रमाण ऐसा ४ । २३ सो ख । २४ ख । २४ इनकरि गुणें अपना अपना बादर कृष्टिसंबंधी मध्यम खंड द्रव्य हो है। बहुरि एक विशेष आदि एक विशेष उत्तर अर अपनी अपनी पूर्व कृष्टिप्रमाणमात्र गच्छ स्थापि तहां जेता संकलन धन भया ताविर्षे एक विशेषका अनंतवां भाग घटाएं जो होइ सो द्वितीय संग्रहका घात द्रव्यतै ग्रहि स्थापना । इहां एक विशेषका अनंतवां भाग घटाया है। तहां बंध द्रव्य देइ पूर्ण करिए है ऐसा जानना । बहुरि एक अधिक द्वितीय संग्रहको कृष्टिनिका प्रमाणमात्र विशेष आदि अर एक विशेष उत्तर अर संक्रमण द्रव्यकरि निपजो कृष्टिसहित अपनी पुरातन कृष्टिप्रमाणमात्र गच्छ स्थापि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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