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लब्धिसार-क्षपणासार क्रोधकी तृतीय पर्यन्त विधान जानने। बहुरि इन सबनिविर्षे समानरूप मध्यम खंड द्रव्य दीया ताकी समलकीररूप सहनानी जाननी। बहुरि इन सबनिविर्षे एक एक विशेष घटता उभय द्रव्य विर्षे विशेष द्रव्य दीया था ताकी क्रमहीन लकीररूप सहनानी जाननी । ऐसही कृष्टि करण कालका ततीयादि अंत समय पर्यन्त विधान जानना। बहुरि कृष्टि करण काल समाप्त भएं कृष्टि वेदक कालका प्रथम समयविर्षे जो सर्व द्रव्य कृष्टिरूप परिनमि तिनि कृष्टिनिवि गोपुच्छाकार भया ताको संदृष्टि कृष्टि कारक विधानविर्षे कही थी तैसैं ऐसी जाननी
नाम
| लोभ । माया
मान । क्रोध ।
द्रव्य
व १२
व १२ ७। ८
| व १२=५ व १२=५
७। ८ ७ ।८
७
।
८
बहरि सर्व द्रव्य ऐसा व १२ याकौं चौइसका भाग देइ अन्य संग्रह विर्षे एक एक भाग कोधकी तृतीय संग्रह विर्षे तेरह भागमात्र द्रव्य है । सो इहां कृष्टि कारक कालविष जाकौं तृतीय संग्रह कृष्टि कही थी ताकौं कृष्टि वेदक कालविर्षे प्रथम कृष्टि कहनी अर जाकौं प्रथम कृष्टि कही थी ताकी तृतीय कृष्टि कहनी तातै क्रोधकी प्रथम संग्रह कृष्टिका द्रव्य ऐसा-व । १२ । १३
२४ याकौं अपकर्षण भागहारका भाग दीएं ऐसा व । १२ । १३ याकौं पल्यका असंख्यातवां भागका
२४ । ओ भाग दीएं एक भाग मात्र द्रव्य तो उच्छिठावली अधिक वेदककाल मात्र प्रथम स्थिति विर्षे असंख्यात गुणां क्रमकरि देना । बहुरि बहुभाग मात्र द्रव्य ऐसा
व १२ । १३ । प तावि क्रोधको द्वितीय तृतीय संग्रहका द्रव्य ऐसा व । १२ । २ मिलाएं तेरहकी २४ । ओ। प
२४ । ओ
जायगा पन्द्रहका गुणकार भएं ऐसा व १२ । १५ । द्रव्य भया । ताकौं आठ वर्षमात्र द्वितीय
२४ । ओ। प
a स्थितिविर्षे अतिस्थापनावली छोडि विशेष घटता क्रमकरि देना ताकी संदृष्टि रचना ऐसी
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