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अर्थसंदृष्टि अधिकार
५७३ अथ क्षपणासारका अनुसारि लीएं क्षपकश्रेणिका व्याख्यानरूप लब्धिसारके सूत्रनिका अर्थकी संदृष्टि लिखिए है-तहां अपूर्वकरणविर्षे गुणश्रेणि गुणसंक्रमण स्थितिकांडक अनुभाग कांडकको संदृष्टि उपशमश्रेणिवत् इहां अर विशेष है तिनकी यथा संभव संदृष्टि जाननी । इहां सत्त्व द्रव्य विर्षे गुणश्रेणि आदि वा बंध द्रव्यको संदृष्टि जैसी
पृष्ठ ५७३ ( क ) में देखो __इर्दा प्रकृति अष्ट आदि क्रमत जैसे क्षप हैं तैसै क्रम” तिनके सत्त्वरूप निषेकनिकी क्रमहीन संदृष्टिकरि तिनविर्षे नीच उदयावलीकौं हीन क्रमरूप वीचि गुणधैणि आयामकी अधिक क्रमरूप उपरि उपरितन स्थितिकी हीनक्रमरूप रचना जाननी। लहुरि पुरुषवेद अर क्रोधकी प्रथम स्थिति स्थापी ताकी जुदी हीन क्रमरूप संदृष्टि दिखाइए है। बहुरि इस रचनाके बीचि बीचि पुरुषवेद अर क्रोधादिकका बंध द्रव्यकी जुदी संदृष्टि असी दिखाई है । इहां नीचें आबाधा उपरि निषेकिनिकी संदष्टि जाननी। बहुरि ताके आगें अवशेष कर्मनिकी क्रमहीन रूप सत्त्व निषेक रचनाबिर्षे नीचें उदयावली बीचि गुणश्रेणि उपरि उपरितन स्थितिकी रचना जाननी। बहुरि ताके आगें अवशेष कर्मनिका बंध द्रव्यकी संदृष्टि है। तहां नीचें आबाधा ऊपरि निषेकनिकी रचना जाननो । बहुरि अनिवृत्तिकरणविर्षे स्थितिबंधापसरणादिककी संदृष्टि सुगम है । बहुरि अष्ट कषाय सोलह प्रकृतिकी क्षपणा अंश देशघातिकरण अंतरकरण विर्षे संदृष्टि पूर्वोख्त प्रकार वा विशेष है। ताकी संभवत्ती संदृष्टि जाननी। बहुरि नपुसकवेदका संक्रमण कालविर्षे पूर्वोक्त प्रकार नपुसकवेदका सत्त्व द्रव्य असा स।। १२-४२ ताकौं गुण
७।१० । ४८ संक्रमका भाग दीएं पुरुषवेदविर्षे संक्रमणरूप भया द्रव्यका प्रमाण हो है। अर पूर्वोक्त प्रकार पुरुषवेदका सत्त्व द्रव्य औसा स।। १२-२ ताकौं अपकर्षण भागहार अर पल्यका असंख्यातवां
७।१०। ४८ भाग अर अंक संदृष्टि अपेक्षा पिच्यासीका भाग दीएं गुणश्रेणिका प्रथम निषेक होइ । तिसविर्षे पूर्व सत्त्व निषेक साधिक कीएं पुरुषवेदका उदय द्रव्य हो है । बहुरि समयप्रबद्ध औसा स a ताकौं सातका भाग दीएं मोहका अर ताकौं दोयका भाग दीए पुरुषवेदका बंध द्रव्य हो है। इनकी संदृष्टि असी
संक्रमण
द्रव्य
| स १२-। ४२
७ । १० । ४८ । गु , स।३।१२ - २ ७।१०। ४८ । ओ। प ८५
उदय पुंवेव द्रव्य
बंध पुंवेद द्रव्य
स।
।७। २
बहरि अश्वकरण विषै अंक संदृस्टिकरि जैसे व्याख्यानविर्षे कथन कीया तैसें इहां अर्थ संदृष्टिकरि पूर्वं अनुभाग सत्त्व एक गुणहानिसंबंधी स्पर्धक शलाका ( ९ ) कौं नानागुणहानिकरि गुर्ने मानके स्पर्धक असे ( ९ । ना ) याकौं अनंतका भाग देइ क्रयतें एक दोय तीन अधिक अनंत करि गुण
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