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५७२
लब्धिसार-क्षपणासार
उपरितन स्थिति
अवस्थित
गलितावशेष
इहां क्रम हीनरूप निषेकनिकी संदृिष्टिकरि तहां स्तोक प्रमाण लीए गलितावशेष अर बहुत प्रमाण लिएं अवस्थित गुणश्रेणि आयामकी संदृष्टि अधिक क्रमरूप करी है। असैं उपशमश्रेणिके उतरनेका विधानको संदृष्टि कही।
बहरि उपशमश्रेणि चढनेवालोंके क्रमतें नपुंसकवेद स्त्रीवेद सप्त नोकपाय तीन क्रोध तीन मान तीन माया तीन लोभ एक सूक्ष्मलोभका उपशमावना क्रम” हो है। विशेष इतनानपंसकवेद सहित चढनेवालेक स्त्रीवेदका उपशमन कालविर्षे नपुंसकवेदका भी उपशमावना हो है। तहां क्रोध सहित श्रेणि चढ्याकै क्रोध पर्यंतकी प्रथम स्थिति पहलै होइ । उपरि मानादिककी जुदी जुदी प्रथम स्थिति हो है। बहुरि मान माया लोभ सहित चढनेवालोंके क्रमतें मान माया लोभ पर्यंतनिकी प्रथम स्थिति पहलै होइ । उपरि अवशेषभिकी जुदी जुदी प्रथम स्थिति हो है । तहां प्रथम स्थितिविर्षे अधिक क्रम लीएं द्रव्य दोजिए है। तातै तिनकी अधिक क्रम लीएं असी संदृष्टि रचना हो है
मा३
मा३
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३
कों३
नो ७ खो
स्रो
सा
कोधोवय
मानोदय
__ मायोदय
लोभोदय
बहुरि उपशमश्रेणिका चढनो वा पडनोका कालका अल्पबहुत्वविर्षे संदृष्टि पूर्वोक्त प्रकार वा एकबार आदि अधिककी उपरि एक दोय आदिवार उभी लीकन आदि देकरि कथनके अणुसारि असी संदृष्टि जाननी ।
पृष्ट ५७२ ( क ) में देखो अँसै उपशम चारित्राधिकारविष संदृष्टि जाननी। इति श्रीलब्धिसारटीका अनुसारि उपशमश्रेणिपर्यन्त व्याख्यानकी संदृष्टि संपूर्ण भई ।
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