Book Title: Labdhisar
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Paramshrut Prabhavak Mandal

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Page 653
________________ लब्धिसार-क्षपणासार क्रोध माया लोभके जैसे ९ । ना ख । ९ ना ख । ९ ना । ख । बहुरि इहां क्रोधादिकका गुणकार ख ख ख उपरि एक दोय तीन अधिक थे तिनकौं जुदे कीए ते असे९। ना । ९ ना २ । ९ ना ३ । मानको गुणकार विर्ष अधिक है नाहीं तहां शून्य लिखनी। ख ख ख बहुरि क्रोधका जुदा कीया अधिकका प्रमाण अर अधिक जुदेकरि अपवर्तन कीए क्रोधके असे ९ । ना । स्पर्धकनिकौं अनन्तका भाग देइ बहुभाग जैसे ९ । ना । ख । इनिकौं मिलाए क्रोधकांडकको प्रमाण हो है। अवशेष एक भागमात्र असा ९ । ना अवशेष सत्त्व क्रोधका रहै है । बहुरि तिस क्रोधसंबंधी बहुभागनिका प्रमाण अर अवशेष एक भागका अनन्त बहुभाग ऐसा ९ । ना। ख ख मिलाए मानकांडकका प्रमाण हो है। अवशेष एक भागमात्र ऐसा ख ख ९ । ना अवशेष सत्त्व रहै है । बहुरि जुदा कीया मायाके अधिकका प्रमाण अर क्रोधसम्बन्धी ख ख मानसम्बन्धी कहे थे बहुभाग तिनिका प्रमाण अर मानसम्बन्धी अवशेष सत्त्व एक भागमात्र ताका अनन्त बहुभागनिका प्रमाण ऐसा ९ ना ख मिलाए मायाकांडकका प्रमाण. हो है ख ख ख अर अवशेष एक भाग ऐसा ९ । ना अवशेष सत्त्व रहै है। बहुरि जुदा कीया लोभका ख ख ख अधिकका प्रमाण अर क्रोध मान मायासम्बन्धी कहे थे बहुषाग तिनका प्रमाण अर तिस १० मायाका अवशेष सत्त्व एक भागमात्र ताका अनन्त बहुभागनिका प्रमाण ऐसा ९ । ना । ख ख। ख । ख । ख इनि सवनिकौं मिलाए' लोभ कांडकका प्रमाण हो है। अवशेष एक भागमात्र ऐसा ९ । ना ख । ख । ख । ख अवशेष सत्त्व रहै है। ऐसें इहां उपरि जुदे कीए अधिकनिका प्रमाण लिखि नीचें अन्य मिलाएं तिनका प्रमाण लिखना। तिनको जोडै कांडकप्रकाण हो है ऐसे समझना। बहुरि इस कांडकघात भए पीछे अश्वकरणविर्षे अनन्त गुणहानि लीए क्रोधादिकके स्पर्धक क्रमरूप हो हैं। तिनका प्रमाण नीचे ही नीचे लिखना । ऐसें कीए ऐसी संदृष्टि हो है Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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