________________
५६०
लब्धिसार-क्षपणासार
विर्षे दीया द्रव्य ऐसा-व १२ ४
बहरि द्वितीयादि कष्टिनिविर्षे एक एक चय धटता देइ
ओप४१६-४
ख ख अंतविर्षे एक चयमात्र दीया द्रव्य ऐसा व १२ १-- ऐसे प्रथम समयसंबंधी
ओप। ४ । १६-४
alख ख कृष्टि द्रव्यके उपरि अधस्तन शीर्ष द्रव्य अर अधस्तन कृष्टि द्रव्य अर उभय विशेष द्रव्य विर्षे असंख्यातके ऊपरि एकका गुणकार था ताका द्रव्य ऐसे तीन द्रव्य मिलावनेकौं तीन
उभी लीक रूप ऐसी (II) संदृष्टि कीएं ऐसा भया व । १२ । १ । याकौं पूर्व अपूर्व कृष्टिमात्र अर
ओ
प
एक घाटि गच्छका आधाकरि हीन दो गुणहानिका भाग दीएं चय ऐसा व । १२ । १ १०
ओ।प।४।१६-४
a ख ख याकौं दो गुणहानिकरि गुणें प्रथम कृष्टिका द्रव्य भया अर इस गुणकारविर्षे क्रमतें एक एक घटाइ अंतविर्षे एक घाटि गच्छमात्र घटाएं द्वितीयादि कृष्टिका द्रव्य है तहां रचना ऐसी
अपूर्वकृष्टि द्रव्य
पूर्व कृष्ठि द्रव्य
अधस्तम शीर्थ
उभयविशेष द्रव्य
प्रथमकृष्टि
अन्तकृष्टि
व १२१११६
००००० व १२११६-४
ओप४ १६-४ aख ख
जो प४१६-४ aव ख २
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org