Book Title: Labdhisar
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Paramshrut Prabhavak Mandal

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Page 647
________________ ५६८ लब्धिसार-क्षपणासार स। 3 । १ताकौं अपकर्षण करि उदयावली” वाह्य निषेक अर अंतरायाम अर द्वितीय स्थितिविर्षे पूर्वोक्त प्रकार हीन क्रमकरि दीजिए है । तहां संदृष्टि ऐसी स १२-=a स३१२७श्रो सa१२ श ७ओ उदयावलो इहां सर्वत्र हीन क्रमकरि द्रव्य दीया है । तातें हीन क्रमरूप संदृष्टि करी। तहां उदयावली आदिका विभागके अथि वीचिमें लोककी संदृष्टि करी है। बहुरि अद्धाक्षय निमित्ततै उपशांत कषायस्यों पडि सूक्ष्मसांपरायविर्षे आवै तहां प्रथम समयविर्षे उदयवान संज्वलव लोभका द्रव्यकौं अपकर्षणकरि ताका पल्यकौं असंख्यातवां भागका भाग देइ एक भागकौं उदयादि गुणश्रेणि आयामविर्षे गुणकार क्रमकरि देइ ताके उपरि अंतरायामविर्षे न देइ ताके उपरि तिनके बहुभागनिकौं द्वितीय स्थितिविर्षे विशेष होन क्रमकरि दीजिए है। बहुरि उदय रहित अप्रत्याख्यान प्रत्याख्यान लोभका द्रव्य अपकर्षण करि पूर्वोक्त प्रकार उदयावली बाह्म गुणश्रेणि आयामविर्षे देना । अंतरायाम विर्षे न देना। उपरितन स्थितिविर्षे देना । बहुरि ज्ञानावरणादि छह कर्मनिका द्रव्य अपकर्षण करि उदयावलीविर्षे हीन क्रमकरि गुणश्रेणि आयामविर्षे गुणकार क्रमकरि उपरितन स्थितिविर्षे हीन क्रमकरि देना । ताकी संदृष्टि रचना ऐसी इहां दीया द्रव्यकी संदृष्टि यथासंभव जानि लेनी। बहुरि सूक्ष्मसांपरायका प्रथम समयविर्षे सर्व कृष्टि ऐसी ४ ताकौं पल्यका असख्यातवां भागका भाग दीएं बहुभागमात्र Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org |

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