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अर्थसंदृष्टि अधिकार
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स १२- ७ओ a
सa १२-६४
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स०१२-१ ७भोप ८५
इहां पूर्व उदयावली गुणाश्रोणि थी तिनकी संदृष्टि नीचें क्रमहोनरूप उपरि क्रम अधिकरूप करि इहां भई, उदयादि गुणश्रेणिकी नी–हीतै लगाय क्रम अधिकरूप संदृष्टि करी अर ताके उपरि उपरितन स्थितिकी संदृष्टि करी है अर तहां दीया द्रव्यको संदृष्टि आगैं करो है। बहुरि प्रथम समयविष कीनो गुणश्रेणिका अंत समयविर्षे उत्कृष्ट प्रदेशोदय हो है। तहां प्रथम समय कृत गुणश्रेणिका अंत निषेक ऐसा स । । १२-६४ । द्वितीय समयकृत
७। ओ। प। ८५
गुणश्रेणिका द्विचरम निषेक ऐसा स । ।। १२-१६ । ऐसै क्रमतें मिलैं गुणश्रेणिमात्र द्रव्य ऐसा
७ । ओ। प ८५
स। । १२-याविर्षे इस समयसंबंधी गोपुच्छ द्रव्य ऐसा७। ओ। प
स। । १२-१।१६-२२ साधिक कीएं इहां उत्कृष्ट प्रदेशोदय हो है। ऐसे उपशमश्रणी
। ओ।१२। १६ । ४ चढनेका विधान विर्षे सदृष्टि कही । अव उतरनेका विधानविषै संदृष्टि कहिए है
तहां भव क्षयतें उषशांत कषायतें पड्या देव असंयमी होइ। ताके प्रथम समयविष उदयरूप मोह प्रकृतिनिके कर्मका द्रव्य ऐसा स। १२-ताका अपकर्षणकरि ताकौं असंख्यात
लोकका भाग देइ एक भागकौं उदयावलीविर्षे देइ बहुभाग उदयावलीत वाह्य जो अंतरायाम अर द्वितीय स्थिति विष हीन क्रमकरि दीजिए हैं। बहुरि उदय रहित मोह प्रकृतिका द्रव्य ऐसा
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