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लब्धिसार-क्षपणासार
इहां पूर्वोक्त प्रकार प्रथम स्थित्यादिककी संदृष्टिकरि तहां समय समय क्रम” आदिकी अनुदय कृष्टि घटती बीचिका उदय कृष्टि विशेष हीन अंतको अनुदय कृष्टि बंधती अंतविर्षे वा आदि विर्षे भई तिनकी संदृष्टि करी है। तिनका प्रमाणकी संदृष्टि तहां यथा संभव लिखनी
बहरि सर्व कृष्टिनिका द्वव्य पूर्वोक्त प्रकार ऐसा स । १२-१२१ याकौं पल्यका असंख्यातवां
७८ओ। प
भागका भाग दीएं प्रथम फालि, याकौं क्रम” असंख्यातकरि (गणे) द्वितीयादि फालि होइ । द्विचरम फालि पर्यन्त सर्व फालिनिका द्रव्य घटाएं तिस सर्व द्रव्यकौं पल्यका असंख्यातवां भागका भाग दीएं तहां बहुभागमात्र अंत फालिका द्रव्य हो है। तिनकौं सूक्ष्मसांपरायका प्रथमादि समयविर्षे उपशमावै है । तिनकी संदृष्टिरूप रचना ऐसी
१२-३।२२।प ७।८ओ। स।
स।।१२-18।२२a
aa ७।८।ओ।प।प
२१ ओ।प।प
। १२- ७।८ स।
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बहुरि उपशांतकषायका प्रथमादि समयनिविर्षे उदयादि अवस्थिति गुगश्रेणि आयाम हैं। तहां प्रथम समयविर्षे एक कर्मका द्रव्य ऐसा स १ । १२-ताकौं अपकर्षण भागहारका भाग देइ
एक भागकौं पल्यका असंख्यातवां भागका भाग दीएं एक भाग ऐसा स । । । १२-ताकौं गुण
७ । ओ। प
स्थान काल अंतर्मुहूर्त ताका असंख्यातवां भाग ऐसा २१ ताविर्षे गुणश्रेणि विधानकरि द्रव्य
देना। बहुरि बहुभाग ऐसे स । । । १२-उपरितन स्थितिविर्षे विशेष घटता क्रमकरि देने
७।८। ओप a
तहां संदृष्टि ऐसी
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