________________
दृष्टि अधिकार
५५१
अवशेषबिषै संख्यातका अपवर्तन कीएं ऐसा २ २ । बहुरि प्रथम स्थान विषै विशेष धन ऐसा
22
१०
२२ । २ विषै एक घाटिका ऋण ऐसा २२ सो एतावन्मात्र ही है । तातैं प्रथम स्थानका विशेष 2 ୬୭
विष याकौं मिलाएं प्रथम स्थानका विशेष धन असा २ २ भया । याकौं तीनकरि समच्छेद कीएं
22
असा २ । ३ या विषै प्रथम ऋण औसा २२ । २ अर द्वितीय ऋण अँसा २ २ घटाएं जो २ । २ । ३ २ । ३ 21212 अवशेष रह्या ताका अधिकका प्रथम द्वितीय बहुभाग असा – २२ । २ के उपरि अंसा ( 1 )
३
1
संदृष्टि कीएं ऐसा २२ । २ । यामैं आवली मिलाएं बादरलोभकी प्रथम स्थितिका काल हो है ।
३
१०
बहुरि इहां प्रथम स्थानविर्षं बहुभाग ऐसा २२ । । इहां ऋण ऐसा २ 2 | 2 जुदा कोएं अर ७ । ३ २ । ३
संख्यातका अपवर्तन कीएं ऐसा २० । बहुरि तहां विशेष धन ऐसा २ 19 । इहां ऋण ऐसा 212
३
२ २ जुदा कीएं संख्यातका अपवर्तन कीएं ऐसा २२ याकौं तीनकरि समच्छेद कीएं ऐसा 2 12 2 1
I
२२ । ३ याविषै द्वितीय ऋणकरि अधिक प्रथम ऋण ऐसा २२ । २ घटाएं ऐसा २० । २२ । ३ २ । ३ तिस वहुभागका घन ऐसा २ विषै अधिक कीएं वादर लोभ कालका प्रथम अर्ध साधिक लोभ
1
2 1३
३
वेदक कालका तृतीय भागमात्र ऐसा २२ हो है । बहुरि कृष्टिकरण कालविषै विधानकी संदृष्टि कहिए है
३
जघन्य स्पर्घक की प्रथम वर्गणाकी एक परमाणूविषै अनुभागके प्रतिच्छेद जीवराशितें अनंतगुण ऐसे १६ । ख । तिनके समूहका नाम वर्ग है । ताकी संदृष्टि ऐसी (व) | बहुरि संज्वलन लोभका सत्त्व द्रव्य ऐसा स । । १२ - याक अनुभागसंबंधी गुणहानि अनंत गुणित अनंत
७।८
प्रमाण सो ऐसी ( ख ख ) । साधिक ड्योढ गुणहानिका भाग दीएं प्रथम वर्गणा ऐसी स । । १२७ । ८ ख । ख । ३ २
इस विशेषकर वर्गकौं
या दो गुणहानिका भाग दीएं विशेष ऐसा स । । १२
Jain Education International
१०
७ । ८ । ख । ३ । ख । ख । २
२
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org