________________
लब्धिसार-क्षपणासार
स ११२-५१६-गु
a ७८ उप १२१६५
a. २
स०१२-११६
a /७८ उप १२१६
स १२-६४ ७८उप
स १२-६४ ७८५५
बहरि ऐसे ही माया वेदकविौं मायाके द्रव्य देनेकी संदृष्टि जाननी, किछ विशेष नाही। बहुरि लोभवेदक काल संख्यात आवलीमात्र ऐसा २१। ताकौं संख्यातका भाग देइ बहभागके तीन भागकरि तीन जायगा स्थापना । बहुरि अवशेष एक भागका संख्यात बहुभाग द्वितीय स्थानवि, एक भाग तृतीय स्थानविषं मिलावना। तहां प्रथम स्थानरूप लोभवेदकका आधा काल है। दूसरा स्थानरूप कृष्टिकरण काल है। तीसरा स्थानरूप कृष्टिवेदककाल है । ते ऐसे संदृष्टिरूप जानने
___ द्वितीय तृतीय ।
१० बहुभाग २।१।१। स ।
२ ।। ।३ । ।३। १ । १०
१० विशेष २।१।१ स १।
२१ 9। । १। । १ । ।
प्रथम...
इहां प्रथम द्वितीय स्थानके मिलाए हुए बहुभाग ऐसें २ २।२। इह एक घाटि रूप
ऋण ऐसा २ २-२ जुदा राखि अवशेष विर्षे संख्यातका अपवर्तन कीएं ऐसा २ १ २ । बहुरि
१।३
2.0
दूसरा स्थानका विशेष धन ऐसा २ १।१ इहां एक घाटिका ऋण ऐसा २१
जुदा राखि
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org