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अर्थसंदृष्टि अधिकार
५४९
नाम
प्रथम समय । द्वितीय समय
।
तृतीय समय
अवशेष बहुभाग
मात्र द्रव्य |
स अ ७।२। अ स ।
। स। । अ
७। २ । अ ।
अ अ
स । । अ अ ७ । २ । अ। अ ।
अ अ
संक्रमणरूप
।
|
स। अ २ । २ । अ । अ
स | अ अ ७।२। अ। अ अ
भया द्रव्य
|
७ | २ ।
अ
इहां अधःप्रवृत्तकी सहनानी अकार ताका भाग देइ बहुभागवि एक धाटि तिसहीका गुणकार जानना। वहुरि पुरुषवेद अर क्रोधकौं उपशमाइ मानकौं उपशमावै है तहां मानकी द्वितीय स्थितिका द्रव्य ऐसा स । । । १२-इहां सर्व कर्मका सत्त्व द्रव्यकौं सातका भाग दीएं
७।८ मोहका होइ, ताकौं दोयका भाग दीएं कषायनिका होइ, ताको च्यारिका भाग दीएं मानका होइ । सो दोयकौं च्यारिकरि गुण इहां आठका भागहार मोहके द्रव्यकौं दीया है। याकौं अपकर्षण भागहारका भाग देइ एक भागकौं पल्यके असंख्यातवां भागका भाग देइ एक भाग प्रथम स्थितिविष असंख्यातगुणा क्रमकरि देना। तहां ताकौं अंक संदृष्टिकरि पिच्यासीका भाग देइ एक आदिकरि गुणें प्रथमादि निषेक हो हैं। बहुरि बहुभाग द्वितीय स्थितिविर्षे हीन क्रमकरि देना।
तहां तिस द्रव्यकौं साधिक ड्योढ गुणहानि ऐसा १२ ताका भाग दीएं प्रथम निषेक, ताकौं दो गुणहानि ऐसा (१६) ताका भाग दीएं चय होइ । ताकौं दो गुणहानिकरि गुणें प्रथम निषेक होइ : एक आदि घाटि दो गुणहानिकरि गुणें द्वितीयादि निषेक होइ । ऐसै क्रमतें गुणहानि गुणहानि प्रति आधा आधा होइ। गुणहानिका प्रथम निषेककौं वर्गशलाकाकरि भाजित पल्यप्रमाण जो अन्योन्याभ्यस्तराशि ताका आधा ऐसा प ताका भाग दीएं अंत गुणहानिका प्रथम निषेक होइ ।
व२
तहां दो गुणहानिमात्र गुणकारविर्षे एक घाटि गुणहान्यायाम ऐसा गु घटाएं अंत निषेककी संदृष्टि हो है । ऐसें इनकी रचनाविर्षे द्रव्य देनेकी अपेक्षा नीचें प्रथम स्थितिकी क्रम अधिकरूप संदृष्टिकरि ताके ऊपरि अंतरायामविर्षे अभावरूप निषेकनिकी विदीकी संदृष्टिकरि ताके ऊपरि द्वितीय स्थितिकी क्रम हीन रूप संदृष्टि अर अंतविर्षे अतिस्थापनावलीकी संदृष्टिकरि रचना जाननी । तिनिके आगैं आदि अंत निषेकविः दीए द्रव्यकी संदृष्टि जाननी
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