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अर्थदृष्टि अधिकार
मिथ्या
ΑΛΛ
अंतर
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४
मिश्र
वेद ३ a । १२ ७ । १०
गुणश्रेणि
सम्यक्त्व
बहुरि अंतर निषेकनिका द्रव्य निक्षेपण कीया ताकी वा संक्रमण द्रव्यादिकी संदृष्टि यथासंभव जान लेनी । बहुरि अन्य क्रिया होई द्वितीयोपशम सम्यक्त्वी हो है । अब चारित्रमोहका उपशम विधानविणे संदृष्टि कहिए है
बहुरि नपुंसक वेदादिका सत्त्व द्रव्य इहांतें लगाय यहु कथन तो पाछें लिखना । अर पुरुष darfarer बंध द्रव्यकी रचना ऐसीपृ० ५४३ (क) देखो
इहां नपुंसक वेदादिक्रमतें उपशमाइए है - तिनकी रचनाकरि आगे अवशेष कर्म लिखे । बहुरि तिनके निषेकनिकी क्रम होन संदृष्टिकरि वीचिमैं गुणश्रेणि आयामकी क्रम अधिकरूप संदृष्टि करी है । बहुरि इहां पुरुषवेदादिकका सत्त्व द्रव्यके आगे बंध द्रव्यकी ऐसी 4 संदृष्टि जाननी । इहां नीचें आबाधा ऊपरि निषेकनिकी रचना जाननी । बहुरि मोहका द्रव्य ऐसा १२ - तामें सर्वघाती द्रव्य किंचित् घट्या ताकौं न गिणि ताकौं कषाय नोकषायका
I
स ।
७
भाग दीएं दोयका भाग होइ । अर नोकषायविषै वेद हास्यद्विक रतिद्विक भय जुगुप्साका भागके अर्थ पांचा भाग होइ । दोयकौं पांचकरि गुण दशका भाग होइ । ऐसें वेदादिकका द्रव्य ऐसा
हास्य २ रति २ स । । १२- स । १२ – स । ७ । १० ७ । १० ७ । १०
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भय १ १२ -
५४३
जुगुप्सा १ स । । १२
७ । १०
वहरि अंक संदृष्टि अपेक्षा तीनों वेदनिविर्षं तिनके द्रव्यकों अठतालीसका भाग देइ वियाली च्यारि दोयकरि क्रमतें गुर्णं नपुंसकवेद स्त्रीवेद पुरुषवेदका द्रव्य हो है । बहुरि हास्यद्विकके द्रव्य तैसें ही भाग देइ सोलह बत्तीसकरि गुण हास्य शोकका द्रव्य हो है । वहुरि रति द्विकके द्रव्यक तैसें ही भाग देइ सोलह बत्तीसकरि गुण रति अरतिका द्रव्य हो है । इहां पुरुषवेदका काल अंतर्मुहूर्तमात्र है तातें स्त्री अर हास्य अर अरति शोकका काल क्रमतें संख्यातगुणा है अर नपुंसक वेदादिकका विशेष अधिक है । तिस अपेक्षा ऐसें द्रव्य कया है । बहुरि मोहके द्रव्यकौं अनंत अर सतरहका भाग दीएं आठकरि गुण अप्रत्याख्यान प्रत्याख्यान कषाय आठका द्रव्य हो
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